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________________ । महाजनवंश मुक्तावली ११ है, मुसलमीन बादसाहानें, सदाके लिए, बक्सा हुआ है, इन्हों मैं जतीके नख बहुत थे तब तो सगपण भी श्रीमाल २ आपस मैं ही करते थे, अब परिवार बहुत कम होग या, लेकिन गच्छ खरतरमैं ही रहै, इसलिए गुरु... भक्तिसे लक्ष्मी तो इन्होकी अब भी दासी बन रही है; अब तो ओसवालोंको बेटी देणे लेणे लग गये हैं, ८४ जातिके व्यापारी गोत्रों मैं श्रीमालोंको बादशाहने, उच्चपद दिया था, इस तरह १८ गोत्रोंकी प्रथम थापना भई, फिर सवालाख देस मैं, रत्न प्रभ सूरिःने, सुघड़ चंडालिया.... ये दो गोत्रोंके दस हजार घर प्रति बोधे, दश गोत्र भोजक लोगोंने वाम--- मार्ग छोडा नहीं, प्रच्छन्न पणेवो भी क्रिया करते रहै, और अभी भी करते हैं, इसवास्ते इन्होंके द्वेषियोंने इस करतूतसें, इन्होंको, शूद्रों मैं, दरज कर दिया, अभी विक्रम सम्बत् १९५७ मैं, श्रीबीकानेर राजपूताने मैं, इन्होंको शूद्र समझ, कर लगाणेका विचार था, आखर ब्राह्मणोंके पुरानोंसे, सावित हो गया कि, भोजक ब्राम्हणोंसे ही वने हुये हैं, टाड साहब कृत राजपूताना इतिहास देखो, तथा व्यास मीठालालजी कृत टाड प्रत्त्युत्तर, देखो, तथा जाति भास्कर ग्रंथ देखो पुराण बणाणेवालोंकी ये चतुराई है कि जिसके गोत्रके प्रथम उत्पत्तिका पत्ता नहीं मिलता है तो उन्होंको किसी देवताकी सन्तान ठहरा लेणा है, मतलब, संज्ञा पूरणेड, इस न्यायसें, इतिहास तिमिर नाशक मैं, राजा शिवप्रशाद, सितारे हिन्दनें, इस पुरा-- णोंकी बात पर पूंछड़िया राजाका दृष्टान्त भी लिखा है, वो सच्चा है,. लेकिन जैन लोक ऐसा इतिहास कभी नहीं लिखते, कारण देवताओंकी सन्तान मनुष्य नहीं, देवताओं की उत्पत्ति भोगसें नहीं है, मनुष्यों की उत्पत्ति भोग वीर्यसे है, जानवरसें जान वर मनुष्योंकी मनुष्योंसे. उत्त्पत्ति होती है, तुराईका बीज बोणेसें ककड़ी कैसे पैदा हो सक्ती है, भोनक लोक अपनी उत्त्पत्ति, सूर्य जो आकाशमैं प्रकाश करता है, उससैं मानते हैं, पुराणोंपर यकीन रखके, बुद्धिमान अंग्रेज तथा जैन तथा और भी अकलवरोंकों विचार करणा चाहिये कि, क्या सूर्य देव ऐसे व्यभिचारी, और अन्याई हैं, सो सती कुन्तीका शील तोड
SR No.032488
Book TitleMahajan Vansh Muktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamlal Gani
PublisherAmar Balchandra
Publication Year1921
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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