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________________ महाजनवंश मुक्तावली उपकेशगच्छवजाताथा वह सम्बत् १०८० के वर्ष मैं दुर्लभ रानाकी सभामैं कुँअला विरुद पाया, ये बलीअद् भोजक, अभी भी, वैद्य गोत्र और कुमला गच्छके, सेवक पणेका, काम कर, अपना हक्क लेते हैं, इस तरह साधर्मी, वात्सल्य मैं, ओसवाल महाजनोंके संग, भोजन करनेसें भोजक कहलाए, देव अरि हंत, और गुरू जतीकी सेवा करने लगे, तब राजा प्रजाऊंचे शब्दसें, सेवककहने लगे, इस तरह ८४ जातके ब्राह्मनों मैं में ४ गूजर गोडछखंडेलवाल ब्राह्मणगोत्र १०, राजा ऊपल देवके महाजन होते सो वखत हुए, वाकी नव गोत्र वालोंका हक्क, १७ गोत्र, ओसवालोंके सेवक, भिक्षुकपणेके हक्कदार रहै, राजा ऊपल देवके पिताके भ्राता सालगजी जिन्होंकों, राजा, तातनी याने ( पिताजी ) कहके पुकारते थे, इसवास्ते प्रथम गोत्र तातेहड़ १ बाफणा २ कर्णाट ३ वलहरा ४ मोराक्ष ५ कुलहट ६ विरहट ७ श्रीमाल ( श्रेष्ठि गोत्र ये राजा ऊपल देवका ९ सहचिंती गोत्र १० (ये राजा ऊपल देवके प्रधान था उसका ) आई चणाग गोत्र ११ भूरि ( भटेवरा ) गोत्र १२ ये राजाके सेनापतिका, भाद्रगोत्र १३ चीचट गोत्र १४ कुंभट गोत्र १५ डीडू गोत्र १६ कन्नोज गोत्र १७ लघुश्रोष्ठ गोत्र, १८ ये गोत्र राजाजीके भ्राता छोटे आसपाल उसका हुआ, इस गोत्रमैं सोनपालजी नामके नामी पुरुष हुए इनके नामसें लघुश्रेष्ठि गोत्र वाले सब सोनावत बजणे लगे, ऊपल बडे भ्राता जिन्होंका श्रेष्ठ गोत्र आसपाल छोटा भ्राता जिसका लघु श्रेष्ठि, ये दोनों, वैद्य, सोनावत, वजते हैं, सेठिया, और सेठी, गोत्र जो, अब प्रसिद्ध है, वो सब, जिन दत्त सूरजीके प्रति बोधे हुए हैं पालीनगरमैं, और सुचिंती गोत्र वर्द्धमान सूरिः खरतर गच्छाचार्यके प्रतिबोधक है, सुचिन्ती और सहचिन्ती दो गोत्र जुदे जुदे हैं, बाफणा गोत्र और बहुफणा गोत्र अलग २ है वाफणा मैंसें ३७. साखफटी है, इन्होंका गच्छ खरतर है, श्रीश्रीमाल गोत्र श्रीजिनचन्द्र सूरिः खरतर गच्छाचार्य- महतीयाण गोत्र मैंसें प्रतिबोधके महाजन किए हैं, श्रीमाल गोत्र और श्रीश्रीमाल गोत्र जुदा नहीं है, एक ही है श्रीमाल जातीको, पावों मैं सोना पहननेकी मनाई नहीं
SR No.032488
Book TitleMahajan Vansh Muktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamlal Gani
PublisherAmar Balchandra
Publication Year1921
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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