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________________ महाजनवंश मुक्तावली णाए ) इसका पाप तीर्थकरोंने, फरमाया, परन्तु साध्वीयोंकों द्वार बन्द करणाः और खोलणेकी आज्ञा दी, मतलब कोई लंपट रातकों, खुला द्वार देख साध्वीयोंका, शील न खंडित कर दै जीवहिंसासें शील रक्षाका विशेष धर्म समझ साध्वीयोंको, उपाश्रयका द्वार बन्द करणा, तीर्थकरोंने फरमाया, इस तरह माछीगर धीवरसोनक कसाई सर्व यवन जातीयोंके देव कुल, मठ मंडपादि कराणेसें, एकान्त हिंसा, आरम्भ आश्रव फरमाया श्रीप्रश्न व्याकरण सूत्रके आश्रव द्वार मैं, ओर महानिशीथ सूत्रमैं, दानशील तपः भावनाका जो फल, ऐसा फल, श्रीजिनराजके मंदिर कराणेवाले. श्रावकोंकों, तीर्थंकरोंने फरमाया है, मन्दिर जिनराजका कराणेवाला, श्रावक, वार मैं देवलोक जावै ऐसा फरमाया है, इसलिये ज्ञाता सूत्रमैं, जहां द्रौपदी पूजा करणे गई, उहां जिन मन्दिर, श्रावक लोकोंका, कराया हुआ था, चम्पा नगरी भगवान महाबीरके, केवल ज्ञानयुक्त बिचरते समय मैं, वसी, उसके पाड़े पाड़े याने महोल्ले महोल्ले में, जिन मन्दिर, श्रावक लोकोंके, कराये हुए थे, तभी तो, उवाई सूत्र मैं नगरीके वर्णनमैं, लिखा है, श्रावक लोकोंने जिन मूर्तियां असंख्या करवाई, तभी तो, व्यवहार सूत्रमैं, साधुओंकों जिन प्रतिमाके सन्मुख, आलोयण लेणा, लिखा है, बिगर प्रतिमा भराए, किसके सामने, आलोयण लेणा सिद्ध होता है, इत्यादि अनेक बातोंसें, सिद्ध है कि, जिसमें अल्प पाप बहुत निर्जरा, वह काम साघु श्रावकोंकों, करनेकी आज्ञा तीर्थकरोंने दी है, आप श्रुतकेवली, सर्व जाण हो, मैं इतने दिन, मिथ्या धर्म मैं, मुरझा रही थी, आज आपको अवधि ज्ञानसें जाण, मिथ्यात्व त्याग, अहंत भाषित तत्वकों अक्षर अक्षर सत्य समझा, आपके पास आई हूं और मेरी अरजको आप, सफल करो, दयाधर्म वढे, इसमें आपकों बडा ही लाभ है, यद्यपि आप वीतरागी, एक भवावतारी, निर्मोही हो, तथापि धर्म बृद्धि करणा, आपका कार्य है, क्या महावीर स्वामी, सद्दाल पुत्रकों, यों नहीं समझा सकते हावीर स्वामा, सी थे, तथापि उसके मकान पर चला कर गये, और अनेक बातें पूछी, पीछे पीछे श्रावक करा, केवल ज्ञानी वीतरागीकों, घर पर जाणेकी, क्या आवश्यकता थी, लेकिन जो जिस तरह पर, समझनेवाला हो, उसको उसी तरहसे दया
SR No.032488
Book TitleMahajan Vansh Muktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamlal Gani
PublisherAmar Balchandra
Publication Year1921
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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