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________________ महाजनवंश मुक्तावली उपलदेव, छोटा आसपाल, और आसल, ऊपलदेव राजकुमार, उहड़, ऊध-- रण, दो मंत्रियोंकों संग ले, दिल्लीके शाहन्शाह साधुनाम महाराजाकी आज्ञा ले. ओसियां पट्टण नगर बसाया, रानाकी रक्षासें चारों वर्गों के करीब, ४ लाख घर, बस गये, जिसमें सवा लाख घर तो, राजपूतोंके थे, तीस वर्ष जब, राज्य करते व्यतीत हुए, राजा प्रजाका धर्म, देवी उपासी, वाममार्ग था, उन्होंकी देवी, सच्चाय थी, मांसमदिरासें, देवीकी पूजा कर खाणापीणा करते थे, इस बातकों, मुक्ति जाणेका, धर्म समझते थे, इस समय, श्रीपार्श्वनाथजी भगवानके, छठे पाटधारी, श्रीरत्नप्रभसूरिः, केशी कुमारगणधरके, पोते चेले, मास क्षमणसें यावज्जीव पारणा करणे वाले, १४ पूर्व धर श्रुत केवली भगवान, विचरते २, श्रीआबू पहाड़ तीर्थ पर, पांचसौ साधुओंके संग, चातुर्मासमैं रहै, जब बिहार करणे लगे, तब उस तीर्थकी अधिष्टायिका अम्बादेवीने, अरज करी, हे प्रभु ! मरुधर .देशकी तस्फ बिहार करणा चाहिए, गुरूनें कहा, इस देश मैं, दयाधर्मी लोकोंकी, वस्ती नहीं होणेसें, साधुओंकों, धर्मध्यानमैं अन्तराय पड़ता है, आहारपानी मिल नहीं सकता, तब अम्बाने कहा, आपके पधारणेसें, बहुत धर्मका लाभ होगा, तत्र गुरूने पांचसौ साधुओंकों, गुजरातकी तरफ भेने, एक शिष्यकों संग ले,. बिहार करते, ओसियां पट्टण पहुंचे, किसी देवस्थानमैं, आज्ञा लेकर मास क्षमण तप करते हुए ठहरे, चेला अपणे लिए गोचरी जाता, धर्मलाभ करते फिरता, लेकिन जैन धर्मकी मर्यादसें, किसी जगह आहारपानी नहीं मिला, तब, किसी गृहस्थका रोग, औषधीसें मिटाकर, उसके घरसें, भिक्षा लेकर निर्वाह किया, ये बात गुरूनें, ज्ञानके उपयोगसें, जाणा, तब शिष्यको उपालंभ दिया, तब शिष्यनें, हाथ जोड़ बिनती करी कि, हे प्रभु इस वस्तीमैं, हरगिज, ४२ दोषरहित, आहार नहीं मिलता, जानकर मैंने दोषित आहारमें निर्वाह किया है, तब गुरूनें कहा, बिहार करणा चाहिये, तैय्यार हुए, तब उस महात्मा मुनिःके, तपके प्रभावतें, सच्चाय देवीने बिचारा, धिक् २, ऐसे तारण तरण, निस्पृही, मुनिः, इस वस्तीसें, भूखे जायगें तो, इस वस्ती मैं अमंगल होगा, तब देवी साक्षात् प्रगट होकर, नम्रता पूर्वक, अरज करी,
SR No.032488
Book TitleMahajan Vansh Muktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamlal Gani
PublisherAmar Balchandra
Publication Year1921
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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