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________________ महाजनवंश मुक्तावली यणकी मूर्तिकी, बलि देकर, भक्तजनोंकों, प्रशादी खाणा, शुरू कराया, ऐसे इन्द्रियोंके सुख पोषण रूपधर्मके सन्मुख, पांचो इन्द्रियोंका, दमन करणा, ऐसा त्याग वैराग्य रूप, जैन धर्म, कब प्रशन्न, मोनी सोखी लोकोंकों, आता था, इत्यादि कारणोंसें, जैन धर्म थोड़े पालनेवाले, लोक रहगये, २४ मैं अन्तके तीर्थकरने फरमाया था कि, है गौतम, भस्म राशि ग्रह मेरे जन्म राशि पर, मेरे निर्वाण बाद आयगा, इस कारण जैनधर्मका, उदय २, पूजासत्कार, कम होता जायगा, तब महाप्रभाबीक आचार्य २१ हजार वर्षके पंचम आरेमें २३ वक्त जैनधर्म बढाते २ उद्योत करते रहेंगें मेरा शासन अखण्ड २१ हजार वर्ष चलेगा चतुर्विध संघ रहेगा ऐसा लेख निर्वाण कलिका वगैरह ग्रंथोंमैं लिखा है इस तरह जैनधर्मका स्वरूप भगवढूचनसें जानकर जिन जिन आचार्योंने जैनधर्मकी उन्नती करी नींव पुखता डाली सो संक्षेप वृत्तान्त यहां दरसाते हैं इस जैनधर्मके लाखों श्रावक बनानेवाले पड़ते कालमैं उद्योतकारी प्रथम सवा लाख घर राजपूतोंके महाजन वंशके १८ गोत्र थापनेवाले पार्श्वनाथ स्वामीके छठे पाटधारी श्रीरत्नप्रभसूरिः वाद १२ गोत्र लाखों घर महाजन बनानेवाले श्रीमहावीरस्वामीके ४३ मैं पट्टधारी श्रीज़िन वल्लभसूरिः एक लाख तीस हजार घर राजपूतोंकों महाजन बनाने वाले दादा गुरुदेव श्रीजिन दत्त सूरिः हजारों घर महाजन बनानेवाले मणिधारी श्रीजिन चन्द्र सूरिः ५० सहस्र श्रावक बनानेवाले श्रीजिन कुशल सूरिः इत्यादि फिर गुजरात देश में लाखों घर जैनधर्मी श्रावक बनानेवाले, मलधार हेम सूरिः, पूर्ण तल्लगछी श्रीहेमाचार्य, और छुटकर गोत्र कई २ और भी अल्प संख्यासे, और आचार्योंने, बनाये हैं, ज्यादह इतिहास सर्व -गोत्रोंका लिखणेसें, लाख श्लोकसंक्षा होणा सम्भव है, इस लिए विशेष -गोत्रोंका लिलाका इतिहास लिखते हैं या पट्टणसें प्रगट भये ___ सबसे पहले महाजन १८ गोत्र ओसियां पट्टणसें प्रगट भये, ये पट्टण : विक्रम सम्बतके पहले चारसे वर्षके करीब, वसा था, जिसका कारण ऐसा हुआ, श्रीभीनमाल नगरीके राजा पमार भीमसेनके पुत्र ३ बडा
SR No.032488
Book TitleMahajan Vansh Muktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamlal Gani
PublisherAmar Balchandra
Publication Year1921
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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