________________
२
महाजनवंश मुक्तावली हिन्दमें २० करोड़ मनुष्योंकी वस्ती है, वो सब जैनधर्म वालोंकी सन्तान है, कारण इनोंके बडेरे सब जैनधर्मी थे, जैनधर्मी राजा, तथा प्रजाकी वस्ती थी, इस वक्त मैं अमेरिका, इंगलिश्तान, जर्मन, आदि विलायतोंके, बड़े २ विद्वानोंका, निर्धार किया हुआ है, कि, सृष्टीके : प्रवाहकी, सरुआतसें ही, जैनधर्म है, बाकी आजीविकाके लिए, पीछेसें, मनुष्योनें, नये २ धर्मोकी कल्पना करी है, इस बातकी सबूती देखणी हो तो, अमेरिका वगैरह, देशोंमैं फिर कर, दया धर्मका, उपदेश करनेवाले, स्वामी विवेकानन्दजी कृत, ( दुनियाका सबसे प्राचीनधर्म ), इस पुस्तकको देखो, इन स्वामीनें आज दिन तक अन्यधर्म वालोंको, विलायतोंमैं, मदिरा मांसादिक कुकर्म छुडाकर, बड़ा ही उपकार किया है, स्वामीका बेष, गेरू रंगित है, ऐसे संन्यासीयोंका, जीवितव्य, सदाके लिए, अमर है, स्वामी शङ्कराचार्य, जिन्होंको हुए हजार आठसै वर्ष हुआ, ऐसा इतिहास तिमिर नाशक मैं, लिखा है, इन्होंनें, राजाओंकी मदद पाकर, जैन धर्मियोंकों, कतल करवाया, ये बात माधवाचार्य कृत, शङ्करदिग्विजय मैं, लिखी है, बस बलात्कार दयाधर्म जैन छुडाकर मिथ्यात्व हिंसाधर्म लोकोंकों, धारण कराया, मरता क्या नहीं करता, इस न्यायसें, लोकोनें, कबूल कर लिया, पीछे रामानुजादिक, चार सम्प्रदायनें, मांस मदिरा, योतो खानेके लिए मनाई करी, मगर, यज्ञ कर खाने मैं, दोष नहीं माना, इस तरह जैनधर्म घटते गया, राजाओंनें, जैनधर्मके, कठिन कायदे देख, पूर्वोक्त आचारियोंका, माल खाना, मुक्त जाना, उपदेश पर, कायम होते गये, यथा राजा, तथा प्रजा, इस न्यायसें, जैनधर्म, जो मुक्तिमार्ग था, सो लोकोंनें, छोड़ दिया, वेद परयकी न मनानेवाले, स्वामी शङ्कराचार्य्यनें, ऐसा उपदेश करा, वेदकी श्रुतीसें, जो यज्ञ मैं घोड़े बकरे आदि जीवोंकों मारते हैं, उन जीवोंकी हिंसा नहीं होती, ये बात मांसाहारियोंकों रुची, तब, देवी, मैं आदिकोंके, सन्मुख पूजाके बहाने, पशुओंकों मार, मांस खाणेमैं दोष नहीं, ये भी यज्ञ हैं, और रामानुजादिक भक्तिमार्ग वालोने, छप्पन भोग, छहों ऋतुओंके सुखदाई, खान पान, पुष्प, अतर, राम, कृष्ण नारा