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१७४ . महाजनवंश मुक्तावली
प्रगट हो ५०० सेका उप गरण राजासें दिलाया क्षेम धाड़ शाखा
प्रगट हुई ये प्रथम भट्टारक गणशाखा १ तीन शाखा और एवं ४ है। ५२ श्री जिनलद्धिसूरिः । ५३ श्री जिनचन्द्रसूरिः। ५४ श्री जिनउदयसूरिः यवज्जीव एकान्तरोपवास नव कल्पी विहार एक .. लाहारी, सं. १४२२ में जेसलमेरमें वेगड़ खरतर गच्छ भेद ४ था। ५५ श्री जिनराज सूरिजी न्याय मार्तण्ड कहलाये । ५६ श्री जिनभद्र सूरिः इन्होंने दोनों भैरवों की आराधना करी काला
भैरूंकों गच्छाधिष्टायक बणाया गद्दी धरकों मंडोवर जाणा, आराधे तब साहाय कारी रहूंगा, बलि देणा अष्ट द्रव्यकी ऐसा वचन लिया बोहरा महाजन करे १४७४ में पीपलिया खरतर ५ मागच्छ भेद
भट्टारक गच्छमें इन्होंसें भद्रसूरिः शाखा चली। ५७ श्री जिनचंद्र सूरिः इन महाराजाके देव लोक हुए पीछे १५३१ में
तपागच्छी दस्सा श्री माली वणियां लिखारी बँकेनें जिन प्रतिमा निषेध रूपमत अहमदाबादमें चलाया उसमें ३ गुजराती २ नागोरी १ उत्तराधी
इन्होंमें ५ सम्प्रदाई विद्वान होकर जिन प्रतिमा मन्तव्य करली । ५८ श्री जिनहन्स सूरिः इन्होंने गहलड़ा गोत्र थापा बहुत महाजन बनाये
आचारांग सूत्रपर दीपिका बनाई देव सानिद्धसें ५०० से कैदी बादशाहसे छुड़ाये मुल्कोंमे अमारी डूंडी पिटवाई इन्होंके समयमें १५६४ में आचार्य खरतर गच्छभेद ६ जो पाली नग्रमें है १९६२ कड़वा मती १९७० मलूकेकामतत्याग बीजे वैश्यने बीजा मत निकाल जिन प्रतिमामानी १५७२ में तपागच्छों से पार्श्व चन्द्रजीने ५ की
संवत्सरी प्रमुख सम्प्रदाय निकाली । ६० श्री जिनमाणिक्य सूरिः इन्होंके समय हुमायू बादशाहके जुल्मसे
( अत्याचारसें ) त्यागियोंने अणसण किया कई लंगोट बद्ध महात्मा पोसा लिया होगये बाकी बहुत गच्छके जती घर बारी होगये तब लोक मति हीन कहणे लगे ( मथेण ) यथार्थ नाम घरधारी मथेणका, मिथन होगा, स्त्रीपुरुषके सहवास जोडेको मिथुन संस्कृतमें कहते हैं