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महाजनवंश मुक्तावली . १७५ तब आचार्य शिथलाचार बहुत फैला देखकर जैसलमरमें रहै वाद वछावत संग्राम सिंहने गच्छभावसें महाराजको वीकानेर बुलाया तब कुशलसूरिःजीका दर्शन करणेकों. संघके साथ देराउर जाते दिनकों जल नहीं मिला रातको जल मिला यावज्जीव चोविहार तब अणसण कर शिष्यको क्रिया उद्धार करणेकी आज्ञा दे देवता हुए, जेसलमेरमें श्रीजिनचंद्रसूरिःको दर्शन देकर सहायकारी हुए, कहा, भस्म ग्रह उतरा है उदयका वखत है जो विचारेगा सो सब काम होता रहेगा। श्री जिनचन्द्रसूरिः इन्होंने लाहोर नगरमें अकबर बादशाहको धर्मोपदेश देकर जैनश्रद्धा कराई अनेक दुःख प्रजाका दूर कराया जैन तीर्थ श्रावकोंकी रक्षा कराई पारसीके मोहरछाप फुरमाण बादशाहके करे हुए बीकानेर बडे उपासरेमें भेज दिये महात्यागी पंच महाव्रतधारी प्रतिमा निंदकोंको परास्त करते गुजरातमें लूंपकमती तपोंको प्रतिबोध देकर श्रावक बणाया गुरूने बिचारा गुजरातमें मतांतरी बहुत होगये हैं उन जीवोंपर करुणा लाकर गुजरातमें विचरकर मत कदाग्रह तोड़ा जगह २ खरतर गच्छ दीपाया और मतान्तरियोंकों शुद्ध श्रद्धाकी पहचान कराई तपा 'गच्छी विजयदान सूरिः के शिष्य धर्म सागरजीने कुमति कुद्दाल कल्पित ग्रंथमें लिखा था कि अभय देवसूरिः नव अङ्गटीका कार खरतर गच्छमें नहीं हुए इसका निर्धार करणेको पाटणमें सब गच्छके प्रमाणीक आचार्य उपाध्याय वगैरहको एकटे किये तब सबोंने धर्म सागरजीको ८४ गच्छ बाहिर कराये बात गीतार्थ विजयदानसूरिः मेडतामें सुनकर कुमति कुद्दाल ग्रंथकी जो प्रति मिली सो सब जल शरण करी और खरतर गच्छसें विरोध करना बंध करा इन्होंके पट्ट हीरविजयसूरिः थे उन्होंने तपा गच्छके संघमें सात हुक्म जाहिर करे परपक्षीको निन्नव नहीं कहणा, परपक्षी प्रतिष्ठित मन्दिर प्रतिमा मानवा योग, पर पक्षिनी धर्म करणी सर्व अनुमोद वा योग इस तरह ७ हैं सो लेख बड़े उपासरे बीकानेर ज्ञानभण्डारमें विद्यमान है, इन दोनोंने बड़ा संप रखा प्रभावीक हो गये इस बखत बालोतरेमें भाव. हर्ष उपाध्यायनें