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________________ महाजनवंश मुक्तावली १७३ १. आर्यावर्त्तमें जगह २ जीव दया और जैन धर्मकी उन्नती खरतरा चार्योंकी महिमा विस्तारपाई बादशाहने कई: २ बन्दोबस्तके फुरमाण लिखे तबसें राज्यगुरू खरतर राज गच्छ कहलाया अनेक प्रतिबादी-. योंकों जीता तब वादशाहने भट्टारक श्री जिनचन्द्रसूरिः ऐसा खास ... रुक्केमें लिखा भट्टारक नाम हेम अमेरादि कोशोंमें पूजनीक पुरुषोंका है अथवा अनेक भट्टोंकों न्यायसे हराणेवाले भट्टारक सर्व गच्छके. लोक खरतर भट्टारक गच्छ कहने लगे। ५० श्री जिन कुशलसूरिः ५२ वीर ६४ योगनी पंचनदी पंचपीर बस करके संघका बहुत उपकार करा, ५० सहस्र श्रावककरे निर्धन श्रावककों धन अपुत्रियेकों पुत्र दिया, पाटण सहरमें गुरूव्याख्यान बांचते थे उस समय ... गूजर मलबोथरेकी निहान रतनाकरमें डूबने लगी उसनें गुरूकी स्तुति शुरू करी कैसें २ अवसरमें गुरू रखी लान हमारी उस समय गरू पक्षी रूप हो उड़कर गूजरमलकी जहाजकों किनारे लगा दर्शन दे पीछे । आकर व्याख्यान करा तब संघनेयेस्वरूपदेख आश्चर्य किया... . । १ महिनेसे गूजरमलने पाटणमें आकर संघसें सर्व वात कही इसतरह स्वर्ग पाये पीछै समय सुन्दर उपाध्यायकी तथा सुखसूरिः की डूबती हुई जहाजकों पार लगाई मुसल्मान लोकोंका बहुत उपकार कर दादा पीरकहलाये फाल्गुण चदी अमावस देरा उरमें धांमपाकर पूनमकों अपने भक्तोंको जगह २ दर्शन दिया फुरमाया भुवन पती निकायका आयुष्य मेरा पहली बंध गया था सम्यक्तवाद गुरूमहाराजसें पाया जो याद करोगे तो होणेवाले कामको शीघ्र कर दूंगा बडे दादा साहिब सौधर्म देवलोक टक्कल विमान ४ पल्यकी स्थितिपर विमानाधिपति हुए हैं उन धर्मदाता गुरूका ध्यान पूजन भक्ती कारककोंमें . सहाय करूंगा भक्तोंके आधीन रहूंगा अन्तर्ध्यान हुए तबसे लोक . नगर २ में चरण पूजने लगे। ११ श्री पद्मसूरिः कुशलसरिः के शंतानी उपाध्यायश्री क्षेमकीर्तिगणीने सबि- याम गढ़में राजपतोंकी जान प्रतिबोध ५०० को दिक्षांदी कुशलसरिः
SR No.032488
Book TitleMahajan Vansh Muktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamlal Gani
PublisherAmar Balchandra
Publication Year1921
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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