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________________ महाजनवंश मुक्तावली १६९ बादशाह हुआ, गुरूकों बड़े उत्सवसें, धनपाल शिवधर्मी महतियान श्रीमालके घर विराजमान किया, उहां त्याग वैराज्ञ अतिशय विद्या उपदेशसें, श्रीमाल सर्व जैनधर्म धारण करा, महितियाण गोत्रियोंको श्री श्रीमालकी पदवी बादशाहने प्रदान की ऐसा भी एक जगह लिखादेखा है दिल्ली लखनऊ आगरा भिंयाणी झुझणूं जैपुर वगैरह सर्व श्रीमाल १३५ गोत्रके गुरूके श्रावक हो गये प्रथम श्रीमाल जैन थे, वह शैव शङ्कराचार्यके हमलेमें हो गये थे, सबोंको पीछा जैन श्रावक करा जिन्होंकी वस्ती राजपूताना दिल्लीके अतराफ सबोंका गच्छ खरतर है, गुरूने संवेग रंग शाला ग्रंथ रचा, । ४२ श्री अभय देव सूरिः वारह वर्ष आंबिल तप करणेसें, गलत कुष्ठ उत्पन्न हुआ, तब शासन देवीने प्रगट हो, नव कोकड़ी सूतकी सुलझाणेका कहा, और कहा हे गुरू अणसण अभी नहीं करणा सेड़ी नदीके तटपर पार्थ जिनेन्द्रकी स्तुति करणा, सर्व अच्छा होगा तब गुरू राजा दिकसंघ युक्त जयति हुअण्ण वत्तीसी बनाकर स्तुति करी थंभणा पार्श्व नाथकी मूर्ति धरणीतलसे प्रगट हुई, स्नान जल छांटते सोवन वर्ण काया हुई, इस वक्त जिन वल्लभ सूरिः चैत्यवासी, चित्रावाल गच्छकी विरुद्ध आचरणा देख, श्रीअभयदेव सूरिःके शिष्य हुए योग्य जांण, गुरूने वाचनाचार्यका पद दिया; आप नव अंगोकी टीका शासन देवीके आग्रहसे, गन्ध हस्ती कृत टीका, दुष्ट लोकोंने 'गलादी, जलादी, शंकराचार्यनें, तब जिनेन्द्र व्याकर्ण पूर्व कृत गुरुमुख, अर्थ धारणासे, टीका वृत्ति रची, १२ वर्ष विचरते रहै, अपने हाथसें सूरि मंत्र देके वल्लभ सूरिःको आपने अनशण करा, तब गच्छमें केइयक साधु आचार्य पद वल्लभ सूरिःके क्रिया कठिनतासें, डरते नहीं देणा धारा, तब गुरूने चामुण्डासच्चाय देवीको बस करके, सौ ग्रंथ संघ पट्टा, पिंड नियुक्ती स्तोत्रादि रचकर, ५२ गोत्र, राजपूत महेश्वरी, वाबड़ी, हुबडोंकों प्रतिबोध देकर महाजन किये तब सर्व संघ और बड़े २ आचार्योने मिल कर आचार्य पद दिया, चामुं
SR No.032488
Book TitleMahajan Vansh Muktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamlal Gani
PublisherAmar Balchandra
Publication Year1921
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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