________________
१६८
- महाजनवंश मुक्तावली
२७ श्री विक्रमसूरिः। २८ श्री नरसिंहमूरिः । २९ श्री समुद्रसूरिः। ३० श्री मानदेवसूरिः इन्होंके समय भावानसें ८८५ हरिभद्रसूरिः स्वर्ग ___ गये और पूर्वोकी विद्या विच्छेद हुई । ३१ श्री विवुध प्रभसूरिः इन्होके समय सूत्रोंके भाष्य कर्ता जिनभद्रगणिः ____ आचार्य हुए । ३२ श्री जयानन्द सूरिः । ३३ श्री रविप्रभसूरिः । ३४ श्री यशोदेवसूरिः । ३५ श्री विमल चन्द्रसूरिः । ३६ श्री देवसूरित्यागी वैरागी क्रिया उद्धारासें सुविहित पक्ष हुआ । ३७ श्री नेमिचन्द्रसूरिः प्रवचन सारोद्धार टीका ग्रंथ बणाया, बरढिया वगैरह __ बहुत गोत्र स्थापन किए ३८ श्री उद्योतनसूरिः इन्होंके निजशिष्य चैत्य वास छोडके आए हुए
वर्द्धमान सूरिः ८३ दूसरे २ थविरोंके शिष्य जिन्होंको सिद्ध वडनीचे शुभ मुहूर्तमें सूरिः मंत्रका वास चूर्ण दिया वह ८३ अलग २ गच्छों की स्थापना करी इसवास्ते खरतर गच्छमें अभीभी ८४ नंदी प्रचलित
है ८४ गच्छ थापन हुआ ३९ श्री वर्द्धमानसूरिः १३ बादशाह आबूपर अम्बादेवीकों, वसकर बुलाकर
विमल मंत्री पचायणेचा पौरवाल गोत्रीकों, प्रतिबोध देकर आबू तीर्थपर १८ करोड तेपन लाख स्वर्ण द्रव्य लगाकर, मन्दिर विमल वसीकी प्रतिष्ठा करी, १३ बादशाहोंने गुरूको सन्मान दिया, हजारों सचिंती वगैरह
महाजन बणाये, देवताको भेजके सीमंधर जिनसे सूरिः मंत्र शुद्ध कराया ४० श्री जिनेश्वरसूरिः अणहिल पुरपाटणमें चैत्यवासी शिथलाचारी
उपकेश गच्छियोंसें राजाने सभा कराई राजा दुर्लभनें शास्त्र मर्यादसे, यथार्थ ज्ञान क्रिया देख, राजाने कहा तुमे खराछो शिथलाचारी चैत्य द्रव्य भक्षकोंको कहा तुमें कुंवला छो, यहांसें खरतर विरुद सं. १०८० में मिला, कोटिक गच्छ वज्र शाखा चन्द्रकुल खरतर विरुद प्रसिद्ध
हुआ, सुविहित पक्ष, । .... ४१ श्री जिन चन्द्र सूरिः इन्होंने एक गरीबके अङ्गग्में चिन्ह देखकर
कहा, तूं शाहनशाह साम्राट होगा, आखिरकों मोजदीन दिल्लीका