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________________ प्रस्तावना. वर्तमानकाल है, ये वेदोंके मंत्र ईश्वरनैं अपनी पूजाके अर्थ किस लिये रचे जो कुछ मनुष्य उसके अर्थ कृत्य हवनादि करे उससे ईश्वर प्रशन्न होता होगा, तब तो रागी हुआ, जो ईश्वरके अर्थ मंत्र पढ कृत्य नहीं करे, उसपर द्वेष करता होगा, इसन्याय द्वेषी ठहरा जब राग द्वेष विद्यमान है, एसेको कोन बुद्धिवान ईश्वर मान सक्ता है, यदि वेदोक्त मंत्र कुछ कार्य साधने समर्थ है तो, अन्यमंत्रोंकों असत्य क्या समझ कहते हैं, मंत्रका अर्थ गुप्त रहश्यका कहना होता है, भगवंत महावीर सर्व्वज्ञनैं पंचम आरेमैं, २३ बेर उदयकर्त्ता २००४ युग प्रधानों का प्रादुर्भाव कथन करा ये आरा २१ हजार वर्षोंका है, उसमैं सैं, जिन - वल्लभ, जिनदत्त, जिनचंद्र आदि नाम विद्यमान है, इन गुरुदेवोंनैं, जिन मैं उदय करा मुला फर्मान जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर वादसा गाजीका हुक्काम किराम क जागीर दारान व करोरियान व सायर मुत्सद्दियान मुहिम्मात सूबे मुलतान विदानंद किचूं हमगी तवज्जोह खातिर खैरंदेश दर आसूदगी जमहूर अनाम बल काफ फर जाँदार मसरूफ व मातू फस्त कि तबकात आलम दरमहाद अमनबुदा बफरा बालबइबादत हजरत एजिद मुत आल इश्तगाल नुमायंद व कब्ले अजीं मुरताज खैर अंदेश जिनचंद्रसूरिः खरतरगच्छ कि बफैजे जिमत हजरते मासरफ इखतिसास याफता हकीगत व खुदातलबी ओब जहूर पैवस्ता बूद ओरा मल मराहिम शाहंशाही फरमूदैम मुशारन इले है इलतिमास नमूद कि पेश अजीं हीरविजयसूरिः सागर शरफ मुलाजिमत् दरियाप्ता बूद दर हरसाल दोवाजदहरोज इस्तदुबा नमूदा बूदार्क दरां अय्याम दर मुमालिके महरूसा तसलीख जांदारे नशवद व अहदे पैरामून मुर्ग व माहीव अमसाले आँनगरदद व अजरूय मेहरबानी बजाँ परवरी मुल्त मसे ऊदरजै कबूल याफ्त अकनू उम्मेदवारमार्क यकहफ्तै दीगर ई दुबा गोय् मिसले ओं हुकूमे आली सरफ सुदूर याबद् बिनाबर उमूम राफत हुक्म फर मूदैम् कि अज तारीखै नौमी ता पुरन मासी अज शुक्ल पच्छ असाढ दूर हरसाल तसलीख जाँदारे न शवद् व अहदे दर मकाम आजार जाँदार मोरेनगर दद् व अस्ल खुद आनस्त किचूं हजरते बेचूं अजबराए आदमी चंदी न्यामतहाय गूनागूं मुहय्या करदाअस्त दरहेच वक्त दूर आजार जानवर नशवद् वशिकमे खुदरा गोर हैवानात नसाजद लेकिन बजेहत् बाजे मसालह दानायान पेश तजबीज नमूदा अंद दरीं बिला आचार्य जिन सिंहसूरिः उर्फ मानसिंह ब अरज असरफ अकदस रसानीद् कि फरमाने कि कब्ल अजीं व शरह सदर अज सुदूर याफ्ता बूद गुम शुदा विनाबरां मुताविक मजमून हुमा फरमान मुज दद फरमान मरहमत फरमूदैम् में बायद् कि
SR No.032488
Book TitleMahajan Vansh Muktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamlal Gani
PublisherAmar Balchandra
Publication Year1921
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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