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________________ २१ हस्बूल मस्तूर अमल नमुदा ब तकदीम रसानंद ब अजफरमूदह तखल्लुफ व इन हिराफ नवरजंद दरी बाब निहायत एह तमाम व कद्गन् अजीम लाजिम दानिस्तात इर ब तबद् दुलू बकबायद आंराह नदिहंद तहरीरन फीरोज रोजसी बयकुम माह खुरदाद इलाही सन् ४९ अहिंसा फर्मान बादशाह अकबर प्रस्तावना. [१] वरिसालए मुकर्रबुल हजरत सुलतानी दौलतखां दरचौकी [ उमदे उमरा ] [२] जुबद तुल आयांन राय मनोहर दरनौबत वाकया नवीसी खाजालालचंद हिन्दी योधपुरस्थ मुन्सी देवीमशादजी कायस्थने करा पारसी फरमान मोहरछाप अकबर वादसा गाजीका सूबे मुलतान के बडे २ हाकिम जागीरदार करोडी और सब सुत्सद्दी [ कर्मचारी ] जानले कि हमारी यही मानसिक इच्छा है कि सारे मनुष्यो और जीव जन्तुओंकों सुख मिले जिससे सबलोग अमनचैनमें रहकर परमात्मा की आराधना में लगेरहें इससे पहले शुभचिंतक तपस्वी जिनचंद्रसूरिः खरतरगच्छ हमारी आमखासमैं हाजर हुआ जब उसकी 'भगवद्भक्ति प्रगट हुई तब हमनें उसको अपनी बडी बादशाहीकी मेहरबानियों में मिलालिया उसनें प्रार्थनाकी इससे पहिले हीर विजयसूरिनें सेवामें उपस्थित होनेका [ हाजर रहनेका ] गौरव प्राप्त किया था और हरसाल १२ दिन मांगे थे जिनमें बादशाही मुल्कों में कोई जीव मारा न जावे और कोई अदमी किसी पक्षी, मछली और उन जैसे जीवोंको कष्ट न दे उसकी प्रार्थना स्वीकार होगई थी, अबमें भी आशा करता हूं कि एक सप्ताहका और वैसा ही हुक्म इस शुभ चिंतकके वास्ते हो जाय इसलिए हमने अपनी आमदयासे हुक्म फरमा दिया कि आषाढ शुक्लप्रक्षकी नवमी से पूर्ण मासीतक सालमें कोई जीव मारा न जाय और न कोई आदमी किसी जानवरको सतावै असल बात तो यह है कि जब परमेश्वरनें आदमीके वास्ते भांति २ के पदार्थ उपजाये हैं तब वह कभी किसी जानवरकों दुख न दे और अपने पेटको पशुओंका मरघट न बनावै परन्तु कुछ हेतुओंसे अगले बुद्धिमानोंनें वैसी तजबीज की है इन दिनों आचार्य जिन सिंहसूरिः उर्फे मानसिंहने अर्ज कराई कि पहले जो ऊपर लिखे अनुसार हुक्म हुआ था वह खो गया है इस लिये हमनें उस फरमान के अनुसार नया फरमान इनायत किया है चाहिये कि जैसा लिख दिया गया है वैसाही इस आज्ञाका पालन किया जाय इस विषयमें बहुतही कोशिश और
SR No.032488
Book TitleMahajan Vansh Muktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamlal Gani
PublisherAmar Balchandra
Publication Year1921
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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