SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 190
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५४ महाजनवंश मुक्तावली. कार १ लेणेवाला पूरा जाणकार, दोनोंमेंसे एक जाणकार, ३ यहांतक तो सौगन यांने पच्चखाण शुद्ध माना गया, और करणेवाला, कराणेवाला, दोनों पञ्चखाणके स्वरूपके अजाण ये पच्चखाण तदन अशुद्ध है, सागपत्तोंके जीव तपासे विगर हरगिज बरताव नहीं करणा चाहिये जो जो पदार्थ वैद्यक शास्त्रवालोंने रोग कर्ता निरूपण किया है सो प्रायः तीर्थकरोंने अभक्ष फरमाया है देखो हमारा बनाया वैद्य दीपक ग्रन्थ, झूठे वरतणरातवासी नहीं रखणे चाहिये पत्तलोंमें भोजन करणेसें श्रावकोंको बडा पाप लगता है कारण उस पतलों पर भोजनका अंस लगा रहता है वह एक पर एक गिरणेसें प्रत्यक्ष कीड़े पैदा होकर हिंसा होती है, पात्र चांदीका सोनेका, गरीबोंकों उमदा कांसीके थाली कटोरे रखणा दुरस्त है आजकल टैन एलियो मिनीम वगैरहके. घर २ में चल रहे हैं धातू वह अच्छा समझणा चाहिये कि जिसके परमाणु पेटमें जाणेसें कोई किस्मकी पीछे तकलीफ न पैदा करे तांबा पीतल. जरूर हानि करते हैं हमेशके मावरेमें ये पात्र बिल्कुल अच्छे नहीं कारण भोजनमें षट्रस आता है और खट्टा रस लोण वगैरह जिस धातुके संग दुश्मन दावा रखता है ऐसा पात्र अच्छा नहीं श्रावककी करणी खरतर गच्छी जिन हर्षनीने चौपई रूप २२ गाथाकी बनाई है सो श्रावकोंके लिए नसियत है जरूर उसको अमलमें लाणाफर्ज है बचपनेमें ब्याह करणा उनोंका समागम कराणा जिन्दगानीको धक्का लगाणा है स्त्री तेरह पुरुष १८ यह कलयुगी रिवाजसे तदन हटना नहीं चाहिये बच्चोंको पढाणा जरूर है मगर याद रक्खो पहले दया धर्मकी शिक्षा दिला कर पीछे अंग्रेजी पढाणा मुनासिव है अगर न दी जायगी दयाधर्म शिक्षा तो अंग्रेजी पढ़ कर जरूर होटलोंके महमांन बणेंगे कोरे घड़ेमें पहले घी डालकर पीछे आप चाहै सो वस्तु डालो खारखटाई विना हरगिज ठीकरी चिकणापन घीका नहीं छोडेगी खार खटाई शिक्षामें क्या चीज है स्त्रीका लालच धनका लालच समझणा चाहिये, कारण धर्मशिक्षा पाये हुए भी इन दोनोंकी आसामें निज धर्म, बहुतसे खो बैठते हैं मगर थोड़े प्रायः नहीं छोडते हैं, इल्म पढाणेमें गणितकला, लिखतकला, शास्त्री अक्षर, अंग्रेजी अक्षरादिकोंकी, पठतकला
SR No.032488
Book TitleMahajan Vansh Muktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamlal Gani
PublisherAmar Balchandra
Publication Year1921
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy