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महाजनवंश मुक्तावली
हैदराबाद में कोट्याधिपती बनके, चक्रांकित रामानुजधर्मी, श्री वैष्णव हो गये, द्रव्यकी सहायता देकर हजारों छन्यातिब्राह्मणको, महेश्वरी अग्रवा लोको, श्री वैष्णव बनादिया, और तोताद्री जो जीर स्वामीका काम था लांच्छित करणेका, वह नई गद्दी बणाकर पुष्करजीमें स्थापित कर दिया, लाखों रुपये सीतारामबागकों लगाया एक तर्फ दक्षिणी आचार्य एक तरफ अपने गौड़ ब्राह्मणोंकी गुरू गद्दी लगादी इस तरह कोई शैव, कोई विष्णुधर्मी हुए, और बहुतसे दिल्लीके गर्दनवाह, सनातन धर्म जैनही पालते हैं, दिगम्बर ज्यादह वेताम्बरी अग्रवालोंमें कम हैं, सतरह पुत्रोंके नांम १ गर २ गोयल ३ मंगल ४ संगल ५ कांसल ६ वांसल ७ ऐरण ८ ठेरण ९ विंटल १० जिंदल १९ जिंजल १२ किन्दल १३ कुंछल १४ बिंछल १५ बुद्दल १६ मिंतल १७ सिंतल और आधे गोत्र गोणमें सब उग्र कुल गिना गया इसतरह १७ ॥ गोत्र कहलाते हैं |
( इस समय प्रसिद्ध नांम गोत्र )
१ गरगोत्र २ गोयलगोत्र ३ सिंगलगोत्र ४ मंगलगोत्र ५ तायगोत्र ६ तरलोगोत्र ७ कांसलगोत्र ८ वांसलगोत्र ९ ऐरणगोत्र १० ढेरणगोत्र ११ सिन्तल १२ मिन्तल १३ झिंघल १४ किंवल १५ कच्छिल १६ हरहरगोत्र १७ वच्छिलगोत्र ॥ गरसूं गण ॥
कर दिखाया है बीकानेर में नाथी पातर मोहता महेश्वरी देश दीवान राजा सूरत सिंहजीके राज्यमे घरमें रक्खी थी उसकी शन्तान महेश्वरीयों में मिलाई गई गड़बड़ चलाते हैं मगर महेश्वरियोंकी बेटियोंसे व्याह तो होते चार, पुखतान वीतगये असलमें पिता तो मोहताजी महेश्वरी होनेसे महेश्वरी नाथीके मोहताही बजते हैं इन्शाफसें तो कोई नुकसान नहीं दीखता क्योंके ब्राम्हणोंकी रान्तान भी तो इस तरह ही भारतमें लिखी है कोई धीवरणीके पेटसें. कोई कीरणीके पेटसे देखो विश्वामित्रका पाराश्वर उसका पुत्र कृष्ण द्वैपायन व्यासके शुकदेव इन सबकी माता अधम जातिवाली थी मगर ब्रह्मकर्मसें ब्राह्मण मानें गये इस न्यायसे रक्खी हुई स्त्रीकी शन्तान पिता के वीर्यसे है इस न्यायसें वैष्णवोंको दलील नहीं उठाणी चाहिये जैन लोकों ये व्यवहार नहीं मालुम देता, अग्रसेंनके भी वेद धर्मी थे, तभी अठार मा पुत्र निज शन्तानकों जैन धर्मके कायदेसें धारेबाद जो हुआ भी है तो, आधा गो ठहराया है, जैनधर्मवाले तो सब उग्रकुल १७॥ में मानते हैं, 1