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________________ महाजनवंश मुक्तावली १३७ जगह २ चैत्यालय कराये, बाकी सर्व अग्र वंशियोंका गोण गोत्र किया, सतरह पुत्रों का सतरह गोत्र हुए, इनके कुल प्रोहित, हिंसक यज्ञ छोड़ कर, दया धर्म धारण करा जो गौड़ ब्राह्मण कहलाते हैं, त्यागी गुरु, मुनिः जती, राजानें कबूल करा, देवी महालक्ष्मी उपदेश देकर दया धर्म घराने वाली, लक्ष्मी पुत्र अग्रवाल लक्ष्मीके ही पात्र रहते हैं, पीछे नौकरी व्यापार, राजाके मुसद्दीपणा करते रहै, एक पुत्रकी शन्तान अग्रोहाका राजा रहा मुसलमीन सहाबुद्दीननें, राज्य छीन लिया, फिर हेमचन्द्र अग्र-वालनें कोई लिखते हैं हे मूढसर वनिया था हुमायूं बादशाहकों विक्रम सम्वत् १५७६ में युद्ध कर भगादिया, दिल्ली तख्तका बादशाह हो गया तब पीछे अकब्बरनें फिर युद्ध कर, छीन लिया, हेमचन्द्रकों अकब्बर अपने पास रखना चाहता था, मगर दिवाननें उसको मार डाला इस बातसें अकब्बर ने नाराज होकर उसकों मक्के निकाल दिया देखो वङ्गवासी छापेमें छपा अकब्बर चरित्र, अग्रवाले राजाओंकी नौकरी करणेसें संगतका असर जैनधर्मके कायदे कठिन लगामदार घोड़ा जैसें कुछ खास केन पसिकै, इसलिए मालखाणा, मुक्तिनाणा, दिनरात दिल चाहै सो खाणा, लगाम छोड़ बैलगामी सातसय वर्ष हुए बहुतसे लोक, कोई शैव, कोई गोकुली, उधर लक्ष्मण गढ़के महानन्द रामजीके लड़के पूरणमलजी दक्षिण रसम जारी थी के, गोत्र पुत्रोंका अलग २ मांन लेते थे, दायमे सब दधीचके, पारीक सब पाराश्वरके, शङ्ङ्खवाल संखारडीके, एककी सब शन्तान लेकिन व्याह आपसमें करते हैं सिरफ माता अलग २ सें अलग गोत्र समझा जाता था । कृष्णकी भूआ कुन्ति उसके पुत्र अर्जुनकों - कृष्णकी वहन सहोदरा व्याही एसा वैष्णव कहते हैं, जैनोंके अंधक वृश्नी १ भोजक श्री २ दोनों एक बाप बेटे यादव अन्धक वृनीका उग्रसेन भोजक वृनीका समुद्र विजयका `पुत्र अरिष्ट नेमि (नेमनाथ ) उग्र सेंनकी पुत्री राजमतीसें व्याह होणे लगा, पडदादा एक था, इसवास्ते अग्रसेननें कुछ नई वार्ता नहीं करी, दक्षिणमें अभी भी मामाकी बेटी भाणजे - शादी होती है राजपूतानेके सब राजा भी ऐसा करते हैं, कोई टालता नहीं, कोई टाल देता है, लेकिन ऐव नहीं गिनते हैं, माहेश्वर कल्पद्रुमवालेने अग्रवाल वंशवालोंकी तारीफ तो लम्बी -चौड़ी मनमानी लिखी है मगर अठारमा गोत्र गोल्हण ठहराया और लिखाये गोत्र कलयुगमें बहुत बढ़ेगा मतलब गोलोंकों अग्रवाल ठहराया है, आपसमें सगपण ठहराया है पूज्य पुरुषकी भक्ती तो करी मगर पूज्य पुरुषके नाक पर मक्खी बैठी जूतीसें उडाणा, ये मिसला
SR No.032488
Book TitleMahajan Vansh Muktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamlal Gani
PublisherAmar Balchandra
Publication Year1921
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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