SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 171
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महाजनवंश मुक्तावली १३५ अभंग सेननें, दोनों कन्या, माधवी १ और चन्द्रिका, २ अग्रसेनको . देदी, ऐसा कहला भेजा, तब सुरेन्द्र अग्रसेंनसें युद्ध करणे आया अग्रसेन ये सुण कर, भग गया, कासीमें जाकर महालक्ष्मीका मंत्रसाधन करा लक्ष्मीने प्रशन्न होंके कहा माँग इसमें कहा लक्ष्मी मेरे घरमें अतूट रहै, और शत्रु मेरे कोई नहीं हो सके, लक्ष्मी बोली, तथास्तु, फिर अलोप हो गई, उहां इसको भूमिमें असंक्ष निधान प्राप्त हुआ कोलापुर जाकर दोन्में कन्याका ब्याहकर, स्वसुरका दातव्य लेकर, अग्ररोहा नगर पीछा लेलिया, उन कन्याओंके गर्भाधान रहा, तब ब्राह्मणोंने कहा, हे राजा, तेरेको लक्ष्मी प्रशन्न है, तूं पुत्रोंके कल्याणार्थ यज्ञ कर, तब राजाने यज्ञ शुरू करा, इस तरह अनेक यज्ञ अश्वमेध गऊमेध छागमेधादिक करते सतरह पुत्र होते रहै, यज्ञ करता रहा, अठारमा पुत्र गर्भमें था, यज्ञके लिए नाना पशु गण जमा किये हुए, त्रास पा रहे थे, इस समय महालक्ष्मी देवी चित्तमें व्याकुल हुई विचारणे लगी, जो मैंने सुकृतार्थ करणे, इसकों प्रशन्न होकर द्रव्य दिया था, उसकों इसनें महा अघोर पापका हेतु नरक जाणेका मार्ग, जीव वधघात, कसाइयोंका कर्म, ब्राम्हणोंके बचनोंसे कर रहा है, इस पापकी क्रिया ___ माहेश्वर कल्पदुम वालोंने अग्रवालोंकी उत्पत्तिमें लिखा है अठारमा यज्ञ आधा हुआ किसी कारणसे ग्लानि हुई ऐसा लिखा है वह ग्लानिके कारणको प्रगट नहीं किया फक्त अपणे वेदधर्मकी वे अदबी छिपाणेकों आदि उत्पत्ति त्रेता युगके प्रथम चर्णवार तक लिखके सबूती दिखाते हैं कोई पूछे किस वेदमें या स्मृतिमें या पुराणमें लिखा है तो मौन करणाही जबाब है और हमनें कुलका होणा असंक्षा वर्षके पहिले दुनियाकी रीत रसम चलते ही पहले लिखे शास्त्रोंसें प्रमाण देकर लिखा है उस जमानेकों वीते असंक्षा चौकडी सतयुग द्वापर त्रेता कलियुग वीत गये हैं आगे चलकर लिखा है अग्रायणके कई पीढी बाद जैनधर्म अग्रवालोंने धरा है इतना नहीं विचारा कि यज्ञमें ग्लानि प्राप्त होणा ही जैनधर्मका कायदा था इस वास्ते खुद अग्रायण बेद यज्ञ छोड जैनी हुए थे जिसमें १७॥ गोत्र हुए थे लिखते शर्म आगई स्वामी शङ्कराचार्यजीके चेले आनन्द गिरी शङ्कर दिग्विजयमें लिखते हैं (वैदिक हिंसा हिंसा न भवति ) अर्थात् वेदकी राहसे जो जानवरका मांस खाया जावै उसमें हिंसा नहीं होती तब विचारो वेदधर्मियोंकों ग्लानि कैसै आवेगी, वल्के ऐसे बचनोंसें तो हिंसा कर्म वेदधर्मी वेधडक कमर बांधके करेंगे, वाहरे धर्मोपदेशक जगद्गुरू बजणे वालोंके चेलेजी, ऐसे न्यायके वचनोंसे ही दिग्विजय हुआ होगा, धन्य दिग्विजय धन्य, फिर माहेवर कल्पद्रुम वालेने आग्रायणके कुलको ब्राह्मण ठहराया है।
SR No.032488
Book TitleMahajan Vansh Muktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamlal Gani
PublisherAmar Balchandra
Publication Year1921
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy