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________________ ११८ महाजनवंश मुक्तावली. विराजित, महाव्रती, एक आचार्यही सं. १००० में विचरते रहै, वाकी सब थविर नामसे विख्यात थे, आज्ञा सबपर उद्योतनसूरिः हीकी थी, तब गुरूमहाराज जैन धर्मके उद्योतका समय अर्द्ध रात्रिकों, नक्षत्रोंका स्वरूप देख, वृद्धिभावसे, प्रथम निज शिष्य वर्द्धमान सूरिकों सूरि मंत्र दिया, फिर ८३ विद्यार्थियोंको. भी सूरिः मंत्र दिया, वह सब चौरासीही पालीताणेके सिद्ध बड़के नीचेसें ही गुरूके हुक्मसें अलग २ विचरे, उन्होंने ज्ञानयुक्त क्रियासें, अपणे २ गच्छ प्रगट करे, साधु साधवी आत्मार्थी बणाये उन्होंके नाम ८४ प्रथम निज शिष्य वर्द्धमान सूरि के शिष्य जिनेश्वर सूरिःको खरतर विरुद मिला वह १ खरतर गच्छ २. सर्व देव सूरिका बड़ गच्छ पूनमिया ३ चित्रावाल गच्छ विच्छेद जाकर तपागच्छ प्रसिद्ध हुआ ४ उपकेश गच्छी ओसियांमें जाके शिष्य वर्ग वधाया, इस करके ओसवाल गच्छ कहलाया, ये अभी चारों विद्यमान है, ५ जीरावला गच्छ ६ गंगेसरा ७ केरंडिया ८ आंणपुरी ९ भरुअच्छा १० उढ़विया ११ गुप्तउवा १२ डेका उवा १३ भीनमाला १४ मुंहडसिया १६ दासरुवा १६ गच्छपाल १७ घोषपाल १८ मग उडिया १९ ब्रह्माणिया २० जालोरी २१ बोकडिया २२ मुझाहड़ा २३ चीतड़िया २४ सांचोरा. २५ कुचड़िया २६ सिद्धान्तिया २७ मसेणिया २८ आगम २९ मलधार ३० भावरानिया ३१ पल्लीवाल ३२ कोरंटवाल ३३ नाकदिक ३४ धर्म घोषा ३५ नागपुरा ३६ उस्तवाल ३७ तोषाबला ३८ सांडेरबाल ३९ मंडोवरा ४० सूराणा ४ १ खंभायती ४२ बडउदिया ४३ सोपारिया ४४ नाडिया ४५ कोछीपुरा ४६ जांगला ४७ छापरिया ४८ बोरसडा ४९ दो चंदणका ६० बेगड़ा ५१ बायड ५२ बिजहरा ५३ कुतपुरा ५४ कोचलिया ५५ सदोलिया ५६ महुकरा ५७ कपूरसिया ५८ पूर्णतल्ल ५९ रेव. इया ६० धूं धूं षा ६ १ थंभणिया ६२ पंचवलदिया ६३ पालणपुरा ६४ गंधारा ६५ गुवेलिया ६६ सार्द्ध पूनमिया ६७ नगरकोटा ६८ हिंसारिया ६९ भटनेरा ७० जीतहरा ७१ जगायन ७२ भांमसेणा ७३ तागडाया
SR No.032488
Book TitleMahajan Vansh Muktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamlal Gani
PublisherAmar Balchandra
Publication Year1921
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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