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महाजनवंश मुक्तावली.
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थे, उन्होंको अठारह हजार वाघड़ देशमें रहनेवाले, जो वाघड़ी वजते थे, उन्होंको खरतरा चार्य, वल्लभ सूरिःने, प्रतिबोध दे खरतर किये, धुंधुंकानगरीमें जिल्लागर हूंबडनें, अपना पुत्र, बल्लभसूरिः को बहि राया, वो दादा श्रीजिनदत्तसूरिः भये, इस तरह मालवा, मेवाड़, गुजरात, वगैरह देशोमें, हुंबड़ दिगाम्बर स्वेताम्बर, दोनों वसते हैं,।
(गोत्र १८)
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गोत्र.
वंश.
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गोत्र.
वंश.
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वंश.
१ खेरजा गहाया । ७ भद्रेश्वर । भाटी १३ सोमेश्वर कछावा २ कमलेश्वर परमार ८ विश्वेश्वर सोनगरा १४ जियाण । हाड़ा ३/ काकडेश्वर • सोलंखी ९ संखेश्वर झाला १५ ललितेश्वर | गहोडिया ४| उत्रेश्वर चौहाण १० गंगेश्वर जादव १६ शृंगेश्वर पडिहार ५. मात्रेश्वर राठोड़-११ अम्बेश्वर नेहरा १७ कास्यपेश्वर चुवाल |६| भीमेश्वर | देवड़ा १२ मामनेश्वर | सीसोदिया १८ बुधेश्वर । चन्द्रावत
( चौराशी गछोंके नाम ) २३ में श्रीपार्श्व प्रभुके शिष्य वर्गोका, उपकेश गच्छ वनता था, केशी कुमारके नांमसें, वह आचार्य मंदाचारी चैत्यवाशी होगये, पछै उद्योतन सूरिके पास ८३ थविरोंके, और भी शिष्य जो त्यागी वैरागी महाव्रती वजते थे, उसमें पार्श्वप्रभुके शंतानीभी, एक थविरके शिष्य पढते थे, महावीरस्वामीके ११ गणधरोंके नव गच्छमेंसें एक 'सुधर्मा स्वामीकाही गच्छ, कायम रहा, वाकी गणधरोंके शिष्य मुक्ति गये, इस गच्छका नाम तो यथार्थमें सौधर्म, निग्रन्थ गच्छ हुआ, बाद क्रम२ से आचर्यों के शिष्यवर्गोंसे, गच्छ कुलशाखा अनेकानेक चली, जोकि श्रीकल्प सूत्रमें दरज़ है, काल दोषसें, सब गच्छ प्रायः थोडे रहै सम्बत् ९०० से विक्रमकेमें शंकर स्वामीने राजोके बलते अत्याचार करा जिस कारण कोटिक गच्छ चन्द्रकुल वज्र शाखाधर आचार्य वृहद्च्छी श्री नेमिचन्द्रसूरिःके पट्ट प्रभाकरश्री उद्योत्तनसूरिः महागीतार्थ प्रभावीक, त्याग वैराज्ञ