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-महाजनवंश मुक्तावली.
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७४ कंबोना ७५ सेवनागच्छ ७६ वाघेरा ७७ बाहड़िया ७८ सिद्धपुरा ७९ घोघरा ८० नेगमिया ८१ संजमा ८२ बरडेवाल ८३ बाड़ा ८४ नागउला, ।
ये सब गच्छ कोई नके नांम कोई क्रियासें कोई विरुदपानेकें कारसें नांम भये ।
( अथ जैनी श्रावगी गोत्र ८४ खंडेलवाल )
प्रथम आदीश्वर भगवानसें लेकर महावीर स्वामीतक जैन धर्मके पालने वाले श्रावक कहात्तेथे महाबीर स्वामी के मुक्ति गये पीछे चारसय तेइस वर्ष . जब बीते, तत्र पीछे उज्जैण नगरमें, विक्रम सम्बत सूर्य वंसी पमार राजा विक्रमादित्यनें चलाया, विक्रम सम्बत् १ एककी सालमें, अपराजित मुनिः के सिंघाड़ामेसें, जिन सेना चार्य १०० सौ मुनिराजको साथ लेकर बिहार करते २ सम्बत् १ एककी मिती माह सुदी १ को खण्डेला नगर में आये, ( खण्डेला नगर जोकि जयपुर राज्यके इलाकेमें है, इसवक्त ) खंडेलाका राजा खंडेलगिरी सूर्य वन्सी चौहाण राज्य करता है अतराप खंडेला ८३ गांम लगे उस राजधानी में कई दिनोंसें महामारी विषूचिका रोग फैल रहा था हजारों मनुष्य मर रहे थे, तब राजा रय्यतका फिकर करता, ब्राम्हनको पूछने लगा हे भूदेव, ये उपद्रव कैसै मिटै, तब ब्राम्हणोंने कहा, हे राजा, नरमेध यज्ञकर, उससे शान्ति होगी, तब राजाने यज्ञ प्रारम्भ करा और ब्राम्हणोंकी आज्ञा मुजब बत्तीस लक्षणवन्त पुरुष लाणेकी आज्ञा दी, अपने नोकरोंकों, उसवक्त एक मुनिश्मशान भूमिमें ध्यान लगाकर खड़े थे, उन्होंको राजाके नोकरों ने पकड़के, यज्ञशालामें ले आये, उन्होंको स्नान कराकर गहणा वस्त्र पहराकर राजाके हाथसें तिलक कराकर हाथमें ब्राम्हणोंने, साकल्य देकर बेदमंत्र बोलते, बेदी कुण्डमें स्वाहाकर पुरोडासा वाटते भये, ब्राम्हणांनें, राजासें, कैसा अनर्थ करा यां उस पापसें, मुल्कमें, असंक्षा गुणा
१ कोई जमाना ऐसा मिथ्या हिंसा धर्म ब्राह्मणोंने फैलाया था घोड़े गऊ बकरे हिरण आदि ६०९ तरहके नाना जीव यज्ञमें होमे हुए ब्राह्मणोंके भक्ष होते थे लेकिन हाथ
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