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महाजनवंश मुक्तावली
अपणी हेतु युक्तियोंसे अपणे पक्षमें करे थे, वो कई दिनों तक इन्होंकी राह दखते रहै, ये तो कच्छ देशमें उतर गये, तब मारवाड़के आंचलिये, लोकोंने नागोरी, तथा गुजराती, कुंवरजीके, धनराजजीके पक्षको, मानने लगे, मारवाड़में ज्यादह प्रसार नागोरीलोकोंका हो गया, सम्बत् १८ में कच्छ देशके महाजन लोक जाती थोडी होणेके कारण, बेटी नहीं मिलणेसें, नाता भी करणे लग गये, उस वक्त आंचल आचार्यने, उन्होंको धर्मोपदेश देकर समझाया, खेतीमें महापाप है, कई लोकोंको सौगन दिलाई, व्यापारके वास्ते बम्बई पत्तन बताया, कइयक लोक इधर आए बदनके मजबूत और उद्यमी साहसीकपणेकर, पहली मजदूरी करनेसे कुछ धन हुआ पछैि साझेसे कम्पनी व्यापार खोला, गुरूदेवकी भक्ति और जती लोकोंके उपकार पर कायम रहै, दिन पर दिन चढ़ती - कला, अब और धनसें होती गई, नरसी नाथा कोट्याधिपति धर्मात्मा प्रथम हुआ, उसने बहुत सहायता देकर जातीका सुधारा करा, अड़बों रुपये जगह २ मन्दिर धर्मशाला गुरुभक्ति साधर्मी भक्तिमें कच्छ वासी श्रावकोंने सो डेढसे वर्षों में लगाया वह प्रत्यक्ष है, जती श्वेताम्बरियोंका जैसा मान पान भक्ति कच्छी श्रावक रखते हैं ऐसा कोई विरला रखता है, दस्सोंका नाता नरसी नाथेनें बन्द करा, अब तो धर्मज्ञ हो गये, लक्ष्मीसें कुसंप बढ गया, ये पञ्चम कालका प्रभाव, सब गच्छके थे, लेकिन वर्तमान आंचल गच्छ मानते हैं दस्से सब, बीसे कच्छमें मांडवी बंदरादिकमें सैकड़ों घर खरतर गच्छ अभी मानते हैं, वीसे व्यापारके वास्ते माग्वाइमें उठके कच्छमें बस गये, गुजराती कच्छमें गये वो तपागच्छ मानते हैं,
(अथ श्रीमालगोत्र )
(उत्पत्ति) भीनमालनगरी जिसका नाम भगवान महावीर स्वामीके विचरते समय श्रीमाल नगर था, राजा श्रीमल्लकी पुत्री लक्ष्मी उसका विवाह करणेकी फिकरमें राजाने ब्राह्मणोंसें पूछा, मेरी कन्या साक्षात् लक्ष्मी तुल्य है, इसके लायक रूपवन्त, गुणवन्त वर राजकुमार मिलणेकी तदबीर बतलाओ, स्वयम्बर मण्डप करणेसे, बहुत राजा आंयगे, इसके रूपको देखकर, मोहित