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तब वह जती सिन्धमें पहुंचा और इन लोकोंको, मिला और पूछा इस देशमें सुखी हो या दुखो, तब वह लोक बोले मुसल्मीन लोक बहुत तकलीफ देते हैं, कोई जिनावर घरमें बीमार होता है तो, काजीको खबर देणा होता है, तब कानी आकरके हमारे घरपर जीतीं गऊके गले पर छुरी फेरता है, आधे मुसलमान हो गये हैं, उस जतीने कहा, हमको तुम जाणते हो, हम कौण है उन्होंने कहा, नहीं जांणते, तुम कौण हो, तब वह बोला, हमारे संग चलो, कच्छ भुज देशमें राव खंगारके राज्यमें, तुमकों सुखस्थानसें, वसादूंगा, वह सब इकट्ठे होकर, उस जतीके संग कछ देशमें आए, रावखंगारने सुथरी, नलिया, जखऊ आदि, गामोंमें, वसाया, बहुत खातर तब ज्या करी, अब वह जतीजी तो राज्यके माननीय, जागीरदार वण बैठे, एक तो राज्यमद, दूसरे बिना कमाया जागीरका धन, अब धर्म उपदेश इन्होकी बलाय करै, वो महाजन खेती करे, गुरुजी जागीरदारसें, रुपया व्याजसें उधार लेवे, रोटी भी जतीके यहां खालेवे, इत्यादि हाल ऐसा बणाके वावाजीका बाबाजी, तरकारीकी तरकारी, बाबाजी तुम्हारा नाम क्या बाबा बोले बच्चा वेगणपुरी, वो हाल वणाया तब राजानें अपने जो राजगुरू प्रोहित थे, वह इन्होंके गुरू वणा दिये, परणे मरणे जन्मणे पर, वो ब्राम्हनोंने अपना घर भरणे इन्होंको पोपलीला सिखलाई, अनेक देवी देव पुजाने लगे खेतीका काम करणेसें ज्यादह धनवान, इन्होंमें कोई नहीं था, क्यों के, नीतिमें लिखा है, ( यत) वाणिज्ये वर्द्धते लक्ष्मी किंचित् २ कर्षणे - अस्ति नास्तिच सेवायां भिक्षा नैवच नैवच ॥१॥ (अर्थ) व्यापारसे लक्ष्मी बढती है, खतीसें कभी होय कभी बरसात नहीं होय तो करजदारी हो जावे, नोकरीमें धन होय किसी झूमके, नहीं होय खाऊ खरचके, और भिक्षुक व भीख मांगणे वालेके कभी धन होवे नहीं लेकिन श्रीमाली ब्राह्मनकों वर्नके और भिक्षुकोंके १ इस तरह गुजरानं करते थे इस वक्त मुंबई पत्तनकों, अंग्रेजसरकार ने, व्यापारका, मानो सागरही खोलके वसाया, इस वक्त आंचल गच्छके श्रीपूज्यरत्न सागर सूरिःके दादा गुरू सम्बत् १८ गुजरातसें कच्छमें पधारे पहले मारवाड़में विचरते थे, इन्होंने जिन २ पूर्वोक्त गच्छोंके प्रतिबोधे महाजनोंकों,