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महाजनवंश मुक्तावली
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हो करके, आपस में लडकरके, लाखों आदमी मरेंगे, इसमें बदनामी मेरी होगी, तब ब्राह्मनोंने कहा, हे राजेन्द्र, अश्वमेघ यज्ञ कर, इसपर लाखों ब्राह्मण देश २ के एकत्रित होंयगे, उन्होंको पूछनेसे तथा जज्ञके पुन्यसे तुह्मारी कन्याको इन्द्रके समान वर मिलेगा, राजाने अश्रमेध यज्ञकी सामग्री असंख्य द्रव्य लगाकर तय्यार कराई भगवान महावीरका, समोसरण सत्रु जयतीर्थ की तलहटीमें हुआ, लाखों पशुजीवोंकी हिंसा देख, श्रीमलराजोंका प्रतिबोध, गौतमसे होणेवाला देख, भगवाननें गौतम गणधरकों आज्ञा दी, हे गौतम, श्रीमाल नगरीका, श्रीमल्ल राजा तुमसें प्रतिबोध पावेगा, लाखों जीवोंका उपकार होणेवाला है, इसवास्ते तुझारे शिष्य पांचसय साधुओं को संगले, तुम श्रीमाल नगर जाओ, भगवानकी आज्ञासे, गौतम विहार करते २ मरुधर भूमीमें प्राप्त हुए, इधर राजानें लाखों ब्राह्मणोंको, देश २ मेंसे निमन्त्रण देदे बुलवाया, वे सब यज्ञ करणे तइयार हुए, बोडेको देश २ में फिराके उहां लाए और भी जीव जलचर थलचर खचर ब्राह्मनोके वचनसें. श्रीमल्ल राजानें अग्निमें हवन करणेको मंगवाये हैं सो सब जीव त्रास पाते विलापात करते करुणा स्वरसे ऐसा जता रहे हैं, अरे कोई दयाका भरा हुआ महापुरुष हमारी अरजी सुणके हमे बचावे, हम बे कसूर मारे जाते हैं। अपने २ दिलमें तथा निजभाषामें कहते हैं अरे दुष्ट ब्राह्मणों हम स्वर्ग नहीं जांणा चाहते, ऐसे स्वर्गमें तुम तुझारे कुटुम्बके प्यारे, माता पिता भाई वगैरहको, क्यों नहीं पहुंचाते अरे मांस खाणेके लालचियो, हमारे प्राण लेणेसे तुमको स्वर्गके स्वप्न आवेंगें, इस हत्यारों राजा और तुम मांसाहार करणेसें, नरक पात्र होवोगे, जिसने एसा सास्त्र वणाया, और तुमकों ये क्रिया सिखलाई वह कभी मुक्ति नहीं पावेगा, दुर्गतिमें भटकेगा, हे अन्तर्यामी तुम पूर्ण ज्ञानसें सचराचर जीवोंके, अभ्यन्तरी परणाम सब देखते हो, आणते हो, हे प्रभु आप दयालु कृपालु हो अब हम निराधार निस्सरण अनाथ जीवोंकी, फरियाद सुनकर, हमारी सहायता करो, इस वखत गौतम गणधर उन २ जीवोंकी कामना मनपर्यव ज्ञानसे, जाणकर, लद्धिबलसें शीघ्र उहां पहुंचे, उहां यज्ञ में हवन होणेवाले जीवोंके, प्रतिपाल, यज्ञशालाके, बाहिर ठहरकर,