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________________ महाजवंश मुक्तावली परतत्र १1) देवीकी भेट करै । जब पहले पुत्रका कोचर में आधान रहे तब पांच महीना स्त्रीके बीतनेसे पूजै तो ११) कलसमें राती जोगा दिराँवै दसहरा पूजै लगी हाथ १।) नारेल १ नव नैवेद्य से पूजा करणी, इतना कोचरोंको करना नहीं, काला कपडा, नीला कपडा, रखै नहीं, घूघरा भैंस बकरी सांकल राखै नहीं, बिछियों में रुणरुणा डालै नहीं, चन्द्रवाईका चूड़ा पहरै नहीं, कदास कोई पहरै तो पीहर पहरै चरखा पालना झणझुणा राखे नहीं, । पीला ओढणा पहले पीहरका स्त्री ओढे, पीछे घरका ओढे, इतना काम करणा तब महीपालजी सब कबूल कर, बीसलदेवी मनाई, पुत्र हुआ, कोचरी बोली, तब कोचर नाम दिया। पीछे कोचरजी मंडोवर छोडकर महीपालजी के संग फलौदीमें आयबसे, सम्बत् १५१५ पीछे महाराजा सूरसिंहजी के संग, उरजाजी कोचर वंशी बीकानेर आये उसमें उरजेके बेटे आठ जिसमें रामसिंहजी १ भाखरसीजी २ रतनसीजी ३ ओर भीमसीजी पिताके संग बीकानेर आये, बीकानेर में महाराजा सूरसिंहजी सं १६७३ में लेखणकी खिजमत इनायत करो और गांमपट्टा दिया, जिन्होंकी शन्तानके घर अन्दाजन १०१ बीकानेर वसते हैं फिर तो सायर मंदी दीवानी वगैरह, अनेक कांमके करता सांमधर्मी राजाओंके हुए, कितनेक घर रतन गढ़ वोदासरे गांम ददरेवा या गांम सारूंडे इलाके राजगढ़, या तालूके सदरनें, रहते हैं, वेटे ४ फलोधी उरजेजीके रह राहूजी १ डूंगरसीनी २ पचायण दासजी, ३ राजसीजी ४ इन्होंके घर ८० अन्दाजन फलोधी वाकी जोधपुर वगैरह बड़ी मारवाड़ सब मिलके जुमले अन्दाजन घर तीनसय कोचरोंके होंयगे, जिनराजके मन्दिरोंकी भक्ति सातक्षेत्रमें धन लगाणा गुरुभक्ति, सनात्न जैनधर्म पर विचारणा, सूरबीर नांमी २ पुरुष इन्होंमें हुए, और होते जाते हैं, फलोधी, केइकोचर कानूगा, वजते हैं, (दोहा) देव गुरुकी भक्तिधर, पुत्र वधेपरि वार । अनधनसे चढ़तीकला, कोचर बड़ सुखकार । १ विद्यमान तपागच्छ । ५ ( पीढियोंकी तफसील ) रामदेवजी १ हरदेवजी २ धनदत्तजी ३ बाहड़जी ४ भीमदेवजी ५
SR No.032488
Book TitleMahajan Vansh Muktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamlal Gani
PublisherAmar Balchandra
Publication Year1921
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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