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________________ ९७* महाजनवंश मुक्तावली धारण किया है विक्रम सम्बत् ९।१८ में यहांसे जैनधर्म पालणे लगा, पीछे इन्होंके पोते स्याम देवजी ब्राह्मनोंकी संगत, राजाओंकी नोकरीसे, श्राद्ध करना, मरेके पीछे, सब घरवालोंनें, बाल मुंडांणा, इत्यादि अनेक कर्म मिथ्यात्वीयोंका करणे लगे. इस वक्त. सं. १००९ में श्रीनेमिचन्द्र सूरि वृहद्गच्छ वालोंने, पुनः मिथ्यात्व छोडाय. बारह व्रत उच्चराय सम्यक्त्वको पहिचान कराई, और गुरूने फरमाया, यहांसें धन माल लेकर तूं गुजरात पाल्हणपुर चलाना, यहां राज्यमें भंग होगा, तब श्यामदेवनीनें, अपने पुत्रकों, बहुतसाधन देकर. राजासें प्रच्छन्न भेजदिया, वह रामदेव, उहां वहुरायत करणे लगा, यहांसे पाल्हणपुरी बोहरा कहलाये, देवी इन्होंकी वीसल, गुजरातमें मांनी, पहली सच्चाय थी, सं. १० १४ में पाल्हणपुर दुकान रह वास पूगल करा, तबसें पूगलिया वजने लगे, पोछै पूगलमें मुसल्मानोंका ऐल फैल देखके, सं. १३८९ में पूगल छोड़के, मंडोवरमें श्रीमंडनी आकर वसे, सं. १४४५ में महीपालनीकों राव चूंडाजीने मारवाडका सब काम सुपर्द करा राठोड़ोने मुंहता पद फिर दिया इस महीपालजीके पुत्र नहीं सो चित्तमें चिन्ता किया करे एक दिन सोझत गांमके वासिन्दे महात्मा पोसालिया लंगोट बद्ध तपागच्छके किसी राजकाजके वास्ते मंडोवर आये वो काम महीपालजीके हाथ था महात्मा इन्होंके घर आया और बोला महतानी ये काम मेरा करो तुह्मारा कोई काम मेरे लायक होय तो कहो तब महीपालजीने वह काम राव चूंडेजीसें कह निर्वाण चढ़ाया और कहा मेरे पुत्र होगाया नहीं तब महात्मा बोला आज पीछे तेरी शन्तान तपागच्छके महात्माओंको गुरू मानें तब विधी बता देता हूं जिसमे पुत्र होगा इसके पहले सिन्धमें तथा मंडोवरमें रहते नेमिचन्द्र सूरिके पाटधारी खरतर गच्छकों गुरू मानते थे तब महीपालजीने तपागच्छ मानना कबूल करा। तब महात्माने कहा-आसोज चेतमें नवरते करो, वीसल देवी मनावो पुत्र होगा। जब देवी कोचरीके रूपसे बोलेगी, तब कोचर नाम दना, फिर तुमारे वंशको कोचरीका अपशकुन नहीं लगेगा, पूजन आसोज चैत् ८' तथा ९ करना । वीसलरायकी भैंसेकी असवारी है, पुत्र जनमे तब अथवा १३-१४
SR No.032488
Book TitleMahajan Vansh Muktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamlal Gani
PublisherAmar Balchandra
Publication Year1921
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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