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महाजनवंश मुक्तावली.
इसमें सिर्फ अपने वाड़ेकों मजबूत करणेसिवाय और कोई भी, प्रमाण सिद्ध नहीं होता, खैर ब्राह्मनोंके बचनसें अज्ञान बालकवत् शैव विष्णु लोक जैन मन्दिरमें नहीं घुसते हैं, और ज्ञानवान, इस वचनकों, कुंजड़ी केर समझते हैं, अपने बेर मीठे, ओरोंके खट्टे, लेकिन बड़ा अफसोस तो यह है कि शैव विष्णु ब्राह्मन लोक प्रथम लिखे शिक्षाकों क्यों भूल गये, माधवा चार्यने लिखा है कि उर्दू फारसी मत पढ़ो, सो तो हमनें हजारों मनुष्योंको, फारसी उर्दू पढ़के नौकरी करते व बकालत करते देखे हैं, माधवाचार्यनें, संदिग्ध बचन धरा है, विचार करता था कि, सभामें पंडित लोक प्रमाण पूछेंगें, तब तो कह दूंगा कि, जैन नाम वैश्याका है यानें । वैष्णवोंने, हाथीसे मरते भी, वैश्याके घरमें जाणा नहीं, तब तो सब लोक कबूल करही लेंगे, नहीं तो अपढ़ लोकोंकों पलेमें गांठकों, प्रगट नाम जैन मन्दिरहीमें जाना निषेधक होगा, इस समय, वोही हाल बण रहा है, ये इतनी वात प्रसंग बस कोचर जाती महेश्वरी हुए पीछे फिर जैन महाजन हुए, इस वास्ते जैन लोकोंकों, वाकिफ करणेको, लिखी है अब कोचरोंको महाजन होणा,. लिखते हैं, सम्बत् ९/१८ में पमार वंसी डीडू महेश्वरी जिनोंकी प्रथम जात, पवार डोडा, पीछे जोगदेव चोटीलेका पुत्र सुजाण कुंमर साथ, महेवरी होगया, जिनमें पंवारोकी राठी जात पड़ी, राठियोंके १६२ नक जिनोंमें, डोडा मुंहता १२५ में नखमें, डोड़ाजीसूं डोडा मुंहता कहलाया सिरोहीमें पंवार वंसी राज करते थे, उन्होंकी दीवानी करणेसें मोहता पद, डोडाजीकों, राजाने इनायत किया, प्रथम सिरोही पमारोंनें साई थी सो वेद गोत्रके इतिहासमें हमने लिखा है, जब गोढ़ वाढमें विष्णु शैवमती पोर वालोंको, हरिभद्रसूरिजीने, उपदेश देकर, जैनी करा, तब डोड़ाजी भी जैनधर्म
१ डोडाजीसें डोडा मोहताराठी वजने लगे ये माहेश्वर कल्पद्रुम पाने ११३ में २ सिरोही पमारोंमें वसाई सो लेख कमले गच्छके महात्मा लखूजी वेदोंकी पीढ़ी दी जिसमें लिखी है. और भी कई गोत्रोंका नांम गांम देकर हमको ये इतिहास में पहले सहायता दी है इन्होंका जस माननीय है कोचर वंसकी उत्पत्ति हमकों कोचर मुंहता लूण करणजी जे संक्षेप दी थ सो धन्यवाद देता हूं ।