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________________ . महाजनवंश मुक्तावली. ९५ मांस देणा, और बड़े भाईकी स्त्री, पति मरे पीछै देवरसे लडका उत्पन्न करणा यह पांच काम कलियुगमें मना है, यह काम होता था, वो ब्राह्मण वेद मतवालोंका सतयुग था, उसके पीछे जैन आचार्योंका उपदेश सुणके राजा राजपूत तथा महेश्वरी पीछे जैनधर्मी होते गये, सो हमने संक्षेपमें कई २ महेश्वरियोंका, जैनमतमें होणा, पीछा लिख भी दिया है, तब विक्रम सम्बत् तेरहसेमें माधवाचार्य दक्षिणमें हुए, इससे माधवाचार्य सम्प्रदाय विष्णुमतमें कहलाती है, रामानुज, शंकरस्वामीके मतकों धक्का लगानेवाला दयाधर्म कुछ माननेवाला दुनियांको गोष्ठीप्रशाद रामचन्द्रजीका भोग खिलाकर रिझाणेवाला वेदपर पडदा डालकर अपना भक्तिमार्ग दिखाणेवाला, रामचन्द्रको ईश्वर माननेवाला, शठकोप कंजरका शिष्य मुनिवाहन, यवनाचार्य, चौथे दरजेके शिष्य रामानुन, इस तरह प्रगट हुए द्वैतपक्ष नैनियोंका मन्जूर करा, प्रपन्नामृत ग्रंथ बनाया, सौच मूलधर्म मानकर, खड़े तीन फाडेका, तिलक और शंख, चक्र, गदा, पद्म, लोहेका तपाकर, अपने मतावलंबियोंको, दाग देणेवाला, महादेवके लिङ्गको नमस्कार नहीं करणेवाला, उसने विष्णुमत नया सांक्षमत चलाया, इसके पीछे, माधवाचार्य २ नीमार्क ३ और विष्णुस्वामी ४ विष्णु स्वामीसे निकला वल्लभाचार्य, इन्होंने कृष्णकों देव माना इत्यादि मत चलाया, माधवाचार्यनें फिर अपने मतावलंवियोंको, जैन होता देखके, और जैन पंडितोने शंकर स्वामीके शिष्यनें, शंकर दिग्विजय अभिमानसें जो बनाया उसको खण्डन करता, ऐब लगाता देखके, शंकर स्वामीके २५० वर्ष वीते पीछे दूसरा शंकर दिग्विजय बनाया, उसमें अपने मतावलंबियोंको, ऐसा डर बैठाया, जैसे कोई मातापिता अज्ञान बालकको डराणेको कहते हैं के हाऊ है, वाघड़ है, ये है तो कुछ नहीं, लेकिन डराणेको कहा करते हैं, सोहाल किया है, ( यत ) न पठेत् यावनी भाषां, प्राणैः कण्ठगतैरपि । हस्तिना मार्यमाणोपि, न गछेजिनमंदिरम् । १ । अर्थ । उरदू फारसी हिन्दुस्थानी प्रमुख भाषा न पढणी न बोलणी चाहै प्राण क्यों नहीं चले जाय, और हाथी मारता होय तो भी शरण लेणे भी, जैन मन्दिरमें नहीं घुसणा ।१।
SR No.032488
Book TitleMahajan Vansh Muktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamlal Gani
PublisherAmar Balchandra
Publication Year1921
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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