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________________ महाजनवंश मुक्तावली. पास ही रहणा, और एक मनुष्यको भेजके सुजाणसिंहको, कहला भेजणा कि, हे राजा तुमनें तो, सारे आर्यावर्तमें, यज्ञ करणा बंध करवाया, लेकिन ब्राह्मण तो, खण्डप्रस्थ नगरके पारही जीवहवनरूप यज्ञ शुरू करा है, वह जब यज्ञविध्वंस करणे आवेगा, तब हम उन्होंको, जहरका धूया. देकर, अचेत कर भाग जायगें, तुम लोक उस वक्त खंडप्रस्थक राज्य लेकर चार भाग करलेणा, और ब्राह्मणोंकी भक्ति, राजसूयादि यज्ञ करणा ब्राह्मणोंको, ईश्वर समझणा, उन्होंकों, यथार्थ यह बार्ता पसन्द हुई, बस वैसाही, हुआ, वह सब ७३ राजा युक्त, विष धूम्रसे, अचेत हुए, जैसा क्लोरोफार्मसे होते हैं, उन्होंने, राज्य दबा लिया, ब्राह्मण भाग. कर एक योगीकों बैल पर चढ़ाकर, एक औरतको संग लिए, उन्होंके पास पहुंचे, ठंडा पानी छिड़क कर उस मूर्छाका उतार करना ठंडे पदार्थ कपूर वगैरह वो विप्रलोग जानते थे, सो करवाया, वह जोगी बैल पर चढा, भस्मी लगाये, गलेमें सांप, आदमियोंके खोपरियोंकी माला पहना . खड़ा रहा, इतनेमें मह्यं रहित उठे, शस्त्र इन्होंके पहले ही ब्राह्मणोंनें, उठा लिए थे, ब्राह्मन लोक बोले, अरे ये महेश्वर शिवपार्वतीनें, तुमकों सचेतम करा है, तुम सब ब्राह्मणोंके यज्ञविध्वंस करणेको आये थे, तब दिया जो श्राप, उससे तुम पत्थर हो गये थे, अब तुम महेश्वरकी उपासना करो, इतनेमें एक मनुष्यनें खबर दी के खण्डप्रस्थमें, ४ पुरुष राज्याधिकारी होगये हैं, तब ब्राह्मनोनें सुजाणसिंहको कहा, अरे अरे तूं मृत्युनींदसे जागा, सबसे जागा नाम प्रगट हुआ, तब ब्राह्मणोंने, अपनी २ व्रत उन्हों पर लगाई, वह सब माहेश्वरी कहलाये, इन ब्राह्मणोंने, अपने वेद धर्म पर अपने पंजेमें गंठे वाद इन्होंकी स्त्रियें, बाल बच्चे, और कुछ २ व्यापार करणे लायक धन, उन ४ राजपूतोंसे दिलाया, उहाँ ये माहेश्वरी जात हुई कोई कहते हैं, डीडवानेमें होनेसे डीड़ कहलाए, उस नगरीका माम महेश्वर धरा,वो चोली महेसर मालव देशमें हैं सुजाणसिंह पर ब्राह्मणोका द्वेष था, तब ब्राह्मणोंने कहा अरे भिक्षुक तूं इन्होंकी पीढीयोंका गुणकीर्तनकर, मांग खा, वह इन वहोत्तरोंका भाट हुआ, विचारा करे क्या, परवस पड़े लगे.
SR No.032488
Book TitleMahajan Vansh Muktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamlal Gani
PublisherAmar Balchandra
Publication Year1921
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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