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________________ महाजनवंश मुक्तावली. हवन, मधुपर्क वगैरह, पाखण्ड नास्तिकमती बौद्ध जैनोंनें, वन्द कर दिया, पुरोडासा यज्ञकी मांसप्रसादी देवता, पितर, ब्राह्मनोंको जो मिलता था, सो सत्र बन्द कर दिया, इस वास्ते ऐसा कोई उपाय होणा चाहिये, सो यज्ञ पीछा शुरू हो जाय तब पांच ऋषियोंने इस बातका प्रचार करणा कबूल करा, और मनमें पांचों दाय उपाय सोचते, मरु धरमें आये, यहां इन्होकों, ४ राजपूत मिले, जिन्होंको सुजाण कंवरने नोकरी व जागीरसें, बे तरफ कर निकाल दिये थे, वह चारों, आबूगिरी राजकी तलहटीमें पांचो ऋषियोंको मिले, इन्होने अपनां २ दुःख उन ब्रामनोंको कह सुनाया, वस ब्राह्मनोंको, भूखोंकों भोजन जाने मिला, विचार करा ये ४ उस सुजाण सिंहके, घरके भेदु हैं, अपना मनोरथ, इन्होंसे सिद्ध हो जायगा ऐसा विचार कर बोले, तुम हमारे कहे मुजब, करो तो, राज्यपति, राजाधिराज बन जाओगे, उन्होंने कहा, हे ऋषियों अंधोंको तो, नेत्रही चाहिये हैं, हम इसी आसामें फिर रहे हैं, वह चारों, इन्होंके संग होगये, आबूपर जाके, इन्होंको कहा के, हम यज्ञ करते हैं, तुम जीते हुए जानवरोंको पकड़ लाओ, यद्यपि धर्म उन्होंका जैन था लेकिन राज्यका और धनका लालची, क्या क्या, अकृत्य नहीं करता, वह चारों, जंगली भीलोंसें मिले, और उन्होंके हाथसें, तरह २ के जानवर पकड़वा मंगाये, यहां ब्राह्मनोंने अनलकुण्ड बनाया, और उन जीवोंकों हवन करना प्रारम्भ करा तब वह राजपूत, घभराये, ब्राह्मनोंने कहा हे राजपूतों, वेदमंत्रोसे, जो देवता, इन्द्र, वरुण, नक्त, पूषा, वगैरहको, बलि दी जाती है, इन जीवोंकी, हिन्सा नहीं होती, ये जीव, और, करणे, करा- . णेवाले, सब स्वर्ग ही जाते हैं, बड़ा पुन्य होता है, अब उनके दिलका खटका दूरकर, ऋषियोंने, मांस आपभी खाया, और उन्होंको भी, खिलाया, पहाड़के वासिन्दे, भील मीणोंको भी खिलाया, अब वह भील मीणे, इन्होंके हुक्म बरदार भये, ब्राह्मणोंने कहा, हम जो छल करेंगे, सो तुम सुणों, हम एक ऋषिकों, महादेव बनायगे, एक भीलणीको पारवती, और आबू पहाइसें ऐसी २, औषधी लाई जायगी, उसका धुंवां लगते ही मनुष्य तत्काल बेहोस हो जायंगे, तुम लोक भीलमेंणोंको संग लिए, यज्ञस्थानके आस
SR No.032488
Book TitleMahajan Vansh Muktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamlal Gani
PublisherAmar Balchandra
Publication Year1921
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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