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________________ ८९ महाजनवंश मुक्तावली. अष्टद्रव्यसें, नाना प्रकारसें, याग (पूजा) करते, साधुओंको वन्दन उनका व्याख्यान सुनना, व्रत पश्च्चखान ५ अनुव्रत ३ गुणबत ४ शिक्षा व्रत, पर्व तिथीमें पोसह करनेसे, पोसह करणा माहण प्रसिद्ध हुए, जिन्होंकी आज्ञासें माहण लोक प्रवर्ते उपधान, आवश्यकादि षट्कर्म करें, उन २ अत्यन्त उत्कृष्ट ज्ञानवन्त माहणों को, चक्रवर्त्तने आचार्यपद दिया, जो वेद आवश्यकादि सूत्रोंके अध्यापक, उन्होंको उवझाय ( याने उपाध्याय ) पद दिया, जो आचारजओझा अपभ्रंस शब्दोंसे पुकारे जाते हैं, एक दिन, भगवान कैलाशपर समवसरे भरत बांदणेकों गया, और माहण वंश स्थापन करणेकी बधाई सुणाऊं, इस अभिप्रायकों, भगवानने, फरमाया, हे राजा, जो उत्कृष्ट श्रावक, माहण नामसें, तेनें, स्थापन करा है, वह सब नवमें भगवान सुविधिनाथ निर्वाण तक तो, जैनधर्मी रहेंगे, पीछे जैनतीर्थ के साथ बिल्कुल विच्छेद हो जायगे, तब, ये माहण लोक, तेरे बनाये, सम्यक् श्रुत, ४ वेदोंमें, अपनी पूजा प्रतिष्ठा बढानेको, सर्व देवोंके देवमाहण, हैं, इत्यादि आजिवीका जमाने, श्रुतियां वणा २ कर डालेंगे, और क्रम २ से, जैन धर्मके द्वेषीपणे कर अनेक मतोंके विश्वकर्मा बण बैठेंगें, सर्व ग्रन्थोंमें क्रम २ सें, मिथ्यात्व भरते जांयगे, आगे इन्होंमें, याज्ञवल्क्य उत्पन्न होगा, सो यथार्थ वेदकूं त्यागके, नई कल्पना कर, याज्ञवल्क्य हो वाच इत्यादि अपने नामका वेद श्रुति, जिसका नाम ही परावर्त्तन करेगा, फिर पर्वत, और राजा वसुके समय, यज्ञ शब्दमें, हलते चलते, जीवोंकों, हवन करणा मांस भक्षण करणा, वेदका धर्म पर्वत करेगा, भावी प्रबल है भवतव्यता टलेगी नहीं, चक्रवर्ति बहुत पछतानेलगा, फिर बोला, हे प्रभु, मैंने तो अच्छा काम, धर्मी जात थापना करी है, आगे जो करेगा, सो भरेगा, इसतरह ही हुआ, इस वेदमें हिंसा क्यों कर डाले गई, सो स्वरूप आठमें नारदने, रावणसें कहीं हैं, ये सब अधिकार, जैन रामायण में लिखा है, इस तरह आर्य - रह गई, वाकी सब, मांसाहारी माहणोंने यो श्रुतियां, जंगढ़में रहनेवाले, ब्राह्मनोंको वेदकी कई २ श्रुति वेदोमें, वेदको नष्ट जुदी २ याद थी, सो व्यासनें भ्रष्ट कर डाला,
SR No.032488
Book TitleMahajan Vansh Muktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamlal Gani
PublisherAmar Balchandra
Publication Year1921
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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