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________________ · महाजनवंश मुक्तावली. उसको ब्राह्मन वेद व्यास कहने लगे, प्रथम संज्ञा ऋग् १ यजु २ और साम ३ फिर, इनमें से, अथर्वण बनाया, इस तरह ४ इन्होंमेंसे, परमार्थ की चार सय श्लोक संक्षा होय तो, आश्चर्य नहीं, बाकी यूं यज्ञ शाला बनाना, यो घोड़ेको बांधणा, यूं फरसीसें काटणा, यूं न 7 " पकाणा यो फलाणेको हिस्सा देणा, माता मेघ, पिता मेघ, अश्वमेध, गौमेध, छाग मेध, फलाणे देवताकों, इस तरह यज्ञ कर तृप्त करणा, सोत्रा मणीं यज्ञ कर, मदिरा पीणा, इत्यादि अधिकार, ही भरा है, इतिहाश तिमिर नाशकका तीसरा प्रकाश देखो, वेदोंके भाष्यकार संस्कृत कायदे. वेदकी श्रुतियोंमें विरुद्धता देखकर आर्षत्वात् ऐसी समाधानी करते हैं, इस तरह वेदका हाल डाक्टर मेक्स मूलर संस्कृत साहित्य ग्रंथ में लिखतेहैं कि वेद के मंत्र भाग बणेको, ३१ सो वर्ष, और छंदो भाग बणेको, २९. ससै वर्ष मात्र हुए हैं, दुसरी बेर वेद फिर लिखणेका समय विक्रम. सम्बत् तीनसेमें पुन्शी जीयालाल अग्रवाल फरुख नगरवाला, सिद्ध करता है, और पुराणों का बनाना विक्रम सम्बत् सातसेमें, उक्त पुरुष सिद्ध करता है ये मनुष्य भी बड़ा खोजी नर रत्न है, पहले इन्होंका वंश वेदमतका था, इन्होंके पिता श्वेताम्बर जैन हुए, अभी ये दिगम्बरी जैन अच्छेगृहस्थ सुनने में आते हैं, कोचर वंशोत्पत्तिमें, ये बात इसवास्ते लिखी है के, कोचर वंशके बड़ेरे, पहले तो जैन धर्मी थे, वाद फिर वेदमतमें होगये, वाद फिर जैन राजा हुए, वाद सुजाण कवर परम जैन धर्मी राजाके, ७२ सामन्त, परम जैनधर्मी थे, जिसका फिर, इन ७३ पुरुषोंकों माहेश्वरी होना पड़ा, सो बृत्तान्त यहां थोड़ा लिखते हैं, जैन इतिहास मुजब, - खंडप्रस्थ नगर, जो अब मालवदेश की सीमापर खण्डेला बजता है किसी इतिहास लेखकने खंडेला जयपुर शमीपस्थ लिखा है खंडेल राजा परम जैन धर्मी था, गुरू इनके दिगम्बर जैन थे, राजानें भट्टारकजीसें पूछा, मेरे पुत्र नहीं, सो स्वामी क्या कारण है, भट्टारकजी बोले, चैत्यालयमें, नानाविधीसे पूजन करा अतिथी भिक्षुकोको, दान दे, साधर्मी वात्सल्यता कर, त ९० इकठ्ठी करी, इस लिए वेद की तीन ही करी, उद्धार कर चौथा बात बिल्कुल दोसे
SR No.032488
Book TitleMahajan Vansh Muktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamlal Gani
PublisherAmar Balchandra
Publication Year1921
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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