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महाजनवंश मुक्तावली.
संग, ४ हजार राजवियोंने, दीक्षा ली, उन्होंसे, भूख नहीं सही गई, तब बनमें जाकर, ऋषभ देवका एक हजार आठ नाम बनाकर, गंगाके तट पर, आदि ब्रह्मा, आदि विष्णु, आदि शिव, आदि योगी, आदि बुद्ध, पुरुषोत्तम, जगत्कर्ता, इत्यादि स्तवन करते, फलफूल खाते, गंगाजल पीते, वृक्षोंकी छाल ओढते, विछाते, तीनसे तेसठ मत उन्होंसे चला, वल्कल चीरी तापस कहलाये, ऋषभ देवके पोते, मरीचीने पहले तो जैन दीक्षा ली, जब क्रिया लोच वगैरह नहीं कर सका, तब सुखदाई दण्डीका भेष बणाया, इसका चेला कपिल, कपिलका आसुरी, आसुरीकों कपिलदेव ब्रह्मदेव लोकमें देवता हुए पीछे प्रकृती १ और पुरुष दोसे २५ तत्वसृष्टिका अनादि पना सिद्ध करा इसके शिष्योंकी संप्रदायमें, शंख आचार्यसें, सांक्षमत प्रसिद्ध हुआ, भरत चक्रवर्तिने, इन्द्रके कहनेसें, बारह ब्रतधारी श्रावकोकों, भोजन कराया, वह भरत राजाकी भक्तिसें, माहन कहलाए, संस्कृ. तम, माहन प्राकृत शब्दका ( ब्राह्मन ) मतहन, याने ब्रह्मको पहिचान, यथा राजा, तथा प्रजा, छखंडके लोक, माहनोंको, भोजन वस्त्रादिसें सत्कार करने लगे, विद्या माहण लोकोंके बालक पढणे लगे, तब भरत चक्रवर्तिने, इन्होंको पढाणे, ऋषभदेव, ४ मुखसें, समवरणमें, देसना देनेवाले, आदि ब्रह्माके बचनानुसार, अहिंसा धर्मका स्वरूप त्याग ब्रतका स्वरूप, छ द्रव्य, नवतत्वका स्वरूप, स्याद्वाद न्याय, गृहस्थके उपनयन, सोलह संस्कार वगैरह अनेक भावमिश्रित जिनयजनका स्वरूपरूप, चार आर्य वेद रचकर संसार दर्शन वेद १ संस्थापन परामर्शन वेद २ विद्या प्रबोध वेद ३ तत्वावबोध वेद ४ पाठशालामें पढाणे लगे, ६ महिनेसें परिक्षा अनुयोग होनेपर, विद्या मुजब इनाम पारितोषिक देणे लगे, और गृहस्थोंके माननीय, ७२ कला, जो ऋषभ देवनें, दुनियांके सुख जीवनके लिए, ग्रन्थ बनाकर, प्रजाकों सिखाया था, सो सब ग्रन्थोंपर हक्क, चक्रवर्तिने, माहणोंकों सोपे, सोलह संस्कार गृहस्थोंके, जन्मसे लेकर मरण पर्यन्त, गृहस्थोंका करवाना, माहनोंके सुपुर्द करा इन्होंमेंसे, वैराज्ञ पाकर बहुत माहण लोक, ऋषभ देवके पास दीक्षा ले लेकर जगह २ साधू होते रहै, गृहस्थ धर्ममें, त्रिकाल श्रीजिनमूर्तिका