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________________ महाजनवंश मुक्तावली. (पोकरणा गोत्र) गांम हरसोरका राठौड सकत सिंह, अपने परिवार समेत पुष्कर तीर्थके मेले पर, स्नान करनेकों, पधारे, उहां एक स्त्री, जिसके ४ छोटे २ पुत्र, और उसके सगा संबंधी कोई नहीं, वह विधवा स्त्री अपने ४ पुत्रोंकों, कुछ खानेकों देकर, घाट पर विठाकर स्नान करने लगी, इतनेमें गोहने, आके, उस स्त्रीके पावोंमें, तन्तु डाला, वह स्त्री पुकारी, इतनेमें खरतर गच्छके, श्रीजिन दत्तसूरि महाराजका शिष्य देवगणिः अकस्मात् थंडिल्ल, जाके आ निकला, सकतसिंह बोला, अरे दोड़ोरे दोड़ो, कोई नहीं गिरासकतसिंह दया लाकर, उस स्त्रीको पकड़ने कूदा, इतनेमें गोहनें, इनकों भी, तन्तुसें, खेंचा, तब देवगणिःने, जल निस्तारणी, अमोघ विद्या स्मरण कर, कहाकेमें, मेरा श्रावक जांण, बचाता हूं तत्काल ऐसा आश्चर्य हुआ के, मानो हाथ पकड़के, कोई निकालता होय, दोनोंको. घाटपर लाके खड़ा कर दिया, हजारों आलम, ये चमत्कार देख, देवगणिःके चरण, पकड़े सकतसिंहने देवगणिःके चरण पकड़के कहा, हे गुरू आपन होते तो आजमें, इस जीवका भक्ष होगया था, धिक् है ऐसे धर्मकें चलाणे वालोंको, जो हजारों सूक्ष्म और बड़े जीवोंका घात, आत्माका घात, ऐसा नदी, कुण्ड तलावोंमें, प्रवेश कर, स्नान धर्म बतलाया, अब आपने जैसा मुझे जिवतव्य दिया है, ऐसामें ऋणमुक्त हो जाऊं ऐसा करो, तब देवगणि बोले हे महाभाग, मेरे गुरू अजमेरमें हैं, सो कल यहां पधारेंगे, चौमासा आज उतर गया है, दुसरे दिन गुरू पधारे, धर्म सुनके, ४ पुत्र, उस महेश्वरीके और सकतसिंह सह कुटुम्ब जैन महाजन हुआ, किसी जगह लिखा है इनमें पुष्करने ब्राह्मण श्रावक हो गये इससे पोकरणे गोत्र नाम प्रगटा मूलगच्छ: खरतर पुष्करसें पोकरणा कहलाये । . (अथ कोचर गोत्र) - पृथ्वी अनादि, श्रेष्टि अनादि, छ द्रव्य अनादि, द्रव्य गुण नित्य, पर्याय अनित्य, उत्सर्पणी कालवतकर, अवसर्पणीवर्त, ऐसे अनंते काल चक्र बीता, और बीतेगा, श्रीआदीश्वर भगवानसें, जैन धर्म चला, आदिश्वरके
SR No.032488
Book TitleMahajan Vansh Muktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamlal Gani
PublisherAmar Balchandra
Publication Year1921
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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