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________________ .. महाजनवंश मुक्तावली. जिसकों तुम, खुदाके कहे हुए मानते हो, उसमें किस जानवरकों, मारके खाणा अंगारमें होमके नहीं बतलाया, छी छी इस क्खतके जरूर मुसल्मान लोग गोस्त खाते हैं, मगर ये नहीं कहते हैं कि, खुदाका हुक्म है, कुरानकी रूहमें जानका मारनेवाला गुनहगार है, देखो वेदमें चारों वर्ण वालोंका केटकिा दामाद घर पर आवे, तब पहली मधुपर्क करना, यानें, गऊको जिबह करनी, फिर उस गोस्तको उबालकर, सब घर वालोंसें, मिजमानी करनी, साहनी मुसलमीनोंको, क्यों बुरा कहते हो, हाथ लगजाय तो, स्नान करते हो, मुसल्मीन जाजमपर बैठ जाय तो, जल नहीं पीते हो, जैसे तुह्मारे बंह्मण बेदके मंत्रको पढ़कर छुरियोंसे, वा, गला घोट कर, घोड़ा बकरा हिरण वगैरहको, अंगारके कुण्डमें, हवन कर खानेसे स्वर्गमें जाना मानते हैं, ऐसे हमारे कानी पानी बिसमिल्ला कहके, जानवरोंकी गरदन काटते हैं, जैसा वेदका मंत्र, वैसा हमारे मजहबका बिसमिल्लाह, अरब्बी मंत्र कुरानी है, इस तरह हमेश बादशाह, ताना दिया करै, श्री मल्लजी मुंहता, इसः बातकों हमेश विचारे, और पुस्तकोंको देखे तो, बादशाहके वचन, सच्च मालुम देते हैं, एक दिन बादशाहनें कहा, देखो साहश्री मल्ल, तुझारे सब देव ऐबीथे जिन्होंसे तुम तरणा चाहते हो, भागवतके दुसरे स्कंधमें तुह्मारे ब्रह्माजीने सराब पीकर अपनी बेटी सरस्वतीसे जना किया, तोबा २; जिसके बनाये बेद, और उसकी शन्तान ब्राह्मन, जो कुछ करे सो, थोड़ा है, इस समयमें, खबर नबेसीने खबर दी के, हजूर, जांपनाह ,जिन चन्द्रसूरिःसे बडा आया है, बादशाह श्री मल्लको साथ लेकर, सामने गया, आदाब अरज बनाकर, सामने बैठा, गुरूनें देव तत्व गुरूतत्व और धर्म तत्वका, स्वरूप धर्मोपदेश दिया, बादशाहनें मांस खाना छोड़ दिया, श्री मल्ल साह प्रतिबोध पाकर निर्दोषित जैनधर्मका श्रावक हुआ, बादशाहनें कहा अहो श्री मल्ल, अब तेरा जन्म, सफल हुआ, में इस धर्मको अच्छी तरह जानता हूं, मगर इस धर्मके कायदे करड़े बहुत हैं, खुदामे मिल जाणे वास्ते, दुनियामें ये एकही धर्म है, बादशाहने, उसदिनसें, अम्बाड़ी, मार्छल, चमर, छत्र, वख
SR No.032488
Book TitleMahajan Vansh Muktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamlal Gani
PublisherAmar Balchandra
Publication Year1921
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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