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महाजनवंश मुक्तावली.
सीसकर, राजा श्री श्री मल्ल, लिखकर, कुरब हाथी निवेश, और ताजीम दी, तुह्मारी शन्तान सदा के लिए पावोंमें, सोना पहर सकती है, इसकी औलाद श्री श्रीमाल कहलाये, भाईपाइनोंका, श्री मालोंसें रहा सादी मिजमानी श्रीमाल ओसवाल दोनोंसे, कोई ख्यातमें लिखा है श्री मालोंमें महतियाण गोत्र जो है सो ही श्री श्रीमाल पदवी पाई है, धर्म पहले शैव विष्णु सबोंकाही रहा था, मूलगुरू गच्छ खरतर है,
( बाबेल संघवी, )
राजा
चौहाण राजा, बाबेल नगरका, रणधीर, रगतपित्त के रोगर्से दुखी था, उसनें कई वैद्यों इलाज करवाया, लेकिन आराम नहीं हुआ संवत १३७१ की सालमें श्री जिन कुशल सूरिःजीके गुरू श्री जिन चन्द्र सूरिः, उहां पधारे, चांदणे आया, राजाक्का वदन जगह २ से फूट गया, गुरूनें कहा, हमारे श्रावक होवो तो, आराम होसक्ता है, राजाने कबूल किया, गुरूनें रातको चक्रेश्वरी देवीकी आराधना करी, देवीनें संरोहणी औषधी दी, प्रभात समय गुरूनें पेटमें पिलाई, और ऊपर भी लगाई, सात दिनसें, कंचन काया हो गई, बाबेल नगरसें, बाबेल कहलाये, इस वक्त वो गांम वापेऊ बजता है, मूल गच्छ खरतर, फेर सत्रुंजयका संघ निकाला, वो बाबेल संघवी बजते हैं, ये संघवी दूसरे हैं संघवी, और कोठारी, बहुत जातमें हैं ।
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( गड़वाणी भगतिया )
गडवा राठोड़ अजमेर परगणा, गांम भखरीमें, श्री जिन दत्तसूरिनें, प्रति बोध देकर, धनकामना पूर्ण करी, गडवेजीसेगड़ वाणी, मश्करी करनेसें भड़क उठा, जिसवास्ते पूरसिंहजी कूं लोक भड़गतिया, कहने लगे । गच्छ खरतर सवालख देशमें सोढा राजपूत सवासौ रूणवाल वेगाणी गोत्र घररूण गांममें रहते हैं, उन्होंका मुख्य ठाकुर, वेगाजी, उन्होंके पुत्र नहीं, और क्षीणताकी बिमारी, अकस्मात् श्रीजिन दत्तसूरिः, सवालाख देशमें विश्व, रते २ पधारे, सोढे राजपूत सब गये, और ठाकुरकी, हकीकत कही, गुरू बोले, क्षीणता मिट जायगी, जो तुम जैनधर्मी हमारे श्रावक हो जाओतो,