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________________ महाजनवंश मुक्तावली. . ३ मूल गच्छ खरतर, । सं. १५८७ में कई २ इन वंश वाले ओर गच्छमें गये। (खेतसी पगारिया मेड़तवाल) ., पमार राजपूतोंका गुरू शंकर दास ब्राह्मन, सनाढ्य था, स ११११ में श्री अभय देव सूरिःका उपदेश सुण भीनमाल नगरमें शिव धर्म त्याग जैनधर्मी हुआ, अभय देव सूरिःको मलधार विरुद था इस वास्ते मूल गच्छ खरतर, बाद और गछमें कई २ गये । - (श्री श्रीमाल ) श्री दिल्ली नगरमें श्रीमन्त साहश्री मल्ल महतियाण जात पेढ पमार, वह बादशाहके खजानेके मालिक थे, बादशाहू श्री मल्लशाहसे, धर्मके बाबत हमेश ठठ्ठा करता था, तुह्मारे साहनी ईमान तो जगह पर है ही नहीं, ब्रह्मादेव, विष्णुदेव,, महादेव, देवी, सूर्य, अग्नि, पानी, गणेश, इस तरह, अगर गिना तो साहनी लाखसे कम नाम नहीं होंगे, तब कहो, इमान तो कहां रहा, शास्त्र तुह्मारे पुराण ऐसे है सो, ठोड़ न ठिकाना, एक पुराणकी बात दुसरे पुराणसें गलत है, सो तुम जानते ही हो, मेंने एक दिन जिन चन्दसूरिःसेबडेसें, धूर्ताख्यान हरिभद्रसूरिःका बनाया हुआ, सुना था; सो तुलारे पुराणोंमें, ठगाई और पागलके बनायेसें मालम देते हैं, गुरू तुह्मारे भोजन भट्ट, आजीविका करनेमें हुशियार, तुलसीको माता कहै, और चाब जावे, शालगराम गंडकी नदीका पत्थर, उसकों ठाकुर कहै, और काती सुदी ११ को बेटाजी, तुलसीमां, सालग बापका, ब्याह अपने हाथ करे, हमारे खान सलेमनें कहा था कि, लाबे बांदी ऐसा नर, जो पीर बबरची भिस्ती खर, सोतो बाह्मण तुह्मारे गुरूकों ही देखके, कहा था, नीचसे नीच जातका दान ले लेते हैं, छोकरे खिलाता, पाणी पिलाता, बोझा उठाता, सन्देशा लाता सईसी, कोचवानी, ऐसा काम कोनसा है, जो तुमारे गुरू नहीं करते हैं, उडिया देशमें जगन्नाथ तीर्थ मैं, पंजाब काश्मीरमें, बंगाल वगैरहमें, ब्राह्मण मच्छी बकरेका गोस्त खाते हैं, वेद तुलारे ऐसे हैं,
SR No.032488
Book TitleMahajan Vansh Muktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamlal Gani
PublisherAmar Balchandra
Publication Year1921
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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