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________________ महाजनवंश मुक्तावली मार्गी १ बीजमार्गी २ कांचलिये ३ और कौल ४ इन चारोंका स्वरूप देख, राजा अचम्भेमें, रह गया, राजा अपने महलमें आया, प्रभात समय, स्नानकर, कोई तो भस्मी लगा, रुद्राख्य धारण करा, पंचकेशी, पावोंमें खड़ाऊ, बगलमें मृगछाला, पुस्तक, कमण्डल धारे हुए, ओं नमः सिवाय जपते हुए, ब्राह्मण पधारे, कोई रामानन्दी त्रिपुण्डधारे, तप्त मुद्रा लिए भये, कोई माधवाचारी तिलक किये, कोई केशरकी आडम्बर खेंचे, कोई कुंकुमके दो फाड़ तिलक किये, कोई मूंछ मुंडाये, लम्बी एक लङ्ग खुली धोती, कुसा डाभ विछाकर, बैठणेवाले, नानाप्रकारसें, विप्रगण पधारे, राजाने उन्होंको देखतेही, सुभटोंको हुक्म दिया के, जल्लादोंसे, इन सबोंको मरवादो, इन्होंने मेरा देश, कापट्यतासे, डूबादिया, बस उन सबोंको राजाने, मरवा डाला, वे मरते कुछ शुभ अभिप्रायसें भूत हुए, अब नगरीमें, घरोंमें विष्ठा वसवै, पत्थर फेंके, इत्यादि बहुत उपद्रव करणे लगे, राजा इस बातसें बहुत दुखी हुआ, इस समय, तरुण प्रभसूरिःरुद्रपल्ली खरतराचार्य, उस बनमें आए, ये स्वरूप सुणके राजा, उहां आया, सब स्वरूप कहा, गुरूने कहा, जो तूं , जैनी श्रावक हो जावै तो, अभी उन सबोंको, बुलाताहूं , राजाने कबूल करा, गुरूने जिनदत्तसूरि दत्ताम्नाय विधिसें, आकर्षण करतेही, भूत प्रकट हुए, गुरूनें कहा खबरदार आज पीछे ऐसा उपद्रव, मत करणा, नहीं तो कीलन करताहूं , भयसें, सब भूतोंनें, कबूल करा, और अन्यत्र चले गये, गुरूनें उस राजाकी, भूत तेडिया जात प्रसिद्ध करी, लोग भूतेडिया कहणे, लगे, मूल गच्छ खरतर, (जडिया गोत्र) ___ सवालख देश, नागोर मेडतेके शमीप कुमारी नगर, यादव भाटी, कुलधर राजा, उसके राणी तो ३२, परन्तु पुत्र किसीके भी नहीं, उस चिन्तामें. राजा दिलगीर था, इतनेमें श्रीजिन कुशलसूरिः, दादा साहिब उहां पधारे, तत्र दिवाननें कही, आप चिन्ता छोडके, इन महाराजाके, चरणका जल राणियोंको पिलाओ, यह गुरू दादासाहिब हाजिरा हुजूर साक्षात् देव है, मिस करके जरूर पुत्र होगा, तब राजानें, बड़े हंगामसें, गुरूकू, नगरमें
SR No.032488
Book TitleMahajan Vansh Muktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamlal Gani
PublisherAmar Balchandra
Publication Year1921
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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