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महाजनवंश मुक्तावली र्दशीके दिन देवीके उपासी पणे कर, मदिरा मांसले गये, इस मतकी बहुत सी स्त्रियें, उस जगह एकट्टी हुई, राजाका कोई तो प्रोहितथा, कोई कथा व्यास था, कोई देरासरका मालिक देरासरी था, कोई दानाध्यक्ष था, कोई यज्ञोपवीत धारणकराणे वाला गुरू था, राजा अपणे महलके गोख मैं, बैठा संध्या करता था, इतनेमें, इन एकेक ब्राह्मनोंको, अंधेरी रात्रि मैं, एकही दिशाको, जाते देखा, राजानें, अपणा प्रछन्न मनुष्य भेजा, मनुष्योंने, खबर दी के, गरीब परवर, ये सब ब्राह्मन, आज काली चवदश है सो, देव की पूजा करने गये हैं, इस बातकी खबर, अपने मतावलम्बी, वाममार्गवाले बिगर, और, किसीकों, ये बताते नहीं, ये सुणकर, राजाने देखा, ये क्या करते हैं सो, दिखाते नहीं, इस बातकों जाननेके लिए, सय्या पालककों कहा के, में किसी काम जाता हूं, तूं में आऊं जब दरबज्जा, दरवानोंसें कहकर, खुला देना, राजा तलवार हाथमें ले, गुप चुप उहां गया तो, जंगलमें, एकान्तदेवीका मंडप, उसका दरबाजा बन्ध देखा, मगर अन्दर शब्द सुनाई दिया, अब वो स्वरूप देखनेके लिए पासमें एक ऊंचा बडका वृक्ष देख उसपर चढकर देखा तो, उहां एक जोगी, उसके पास शराबकी बोतलें धरी हुई, एक बड़ा पात्र जिसमें बड़े पकोड़े मांस पकाया हुआ, सर्व एकत्र किया हुआ, एक प्याला जिसमें मदिरा भरकर, मंत्र बोलता था, फिर पहले
उसने पिया, पीछे सब ब्राह्मनोंकों देवीभक्तोंको उसी प्यालेसें पिलाया, 'पीछे एक स्त्रीको नग्न करके, उसके, भगकों, जलसें, मदिरासें, प्रक्षालकर संबकों चरणामृत दिया, पीछे वह कुंडेका नैवेद्य, भगपर चढा २ कर, सबोंकों, वांट दिया, सो सब लोगोंने खाया, पीछे एक घड़े सब स्त्रियोंकी, कंचुकी, उस योगीनाथनें, एकठी करके, उस घड़ेमें डालदी, 'फिर सबोंको आज्ञा दी के, जिसके हाथ डालणेसे, जिसकी कंचुकी जिसके हाथ लगे, वह चाहै माता हो, चाहै बहिन, बेटी, कोई हो, उसमें रमण करे, अर्थात् मैथुन करै, वह गुरू वो देवीसें रमण करै, उस जोगीका और देवीका वीर्य जो निकले, उसकों एक पात्रमें लेकर, पुष्पोंके बीच धरके, भजन गायन करै फिर वह वीर्य, वी सहत मिलाके, सब वाममार्गीचाटे, इस तरह इन्होंके चार मार्गी धूम