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________________ ... महाजनवंश मुक्तावली. पगमंडे कर, चरण धोकर, केशरादिक उत्तम अचित्त द्रव्यो नव अंगकी पूजा, देवमूर्तिकी तरह करी, और वह चरणामृत ३२ ही राणियोंकों भेना, और राणियोंकों, कहला भेजा कि, इस जलकों, वांट २ कर, पीजाओ, इसमें २१ राणियोंनें तो, गुरूकी भक्ति करके, पी गई, ११ राणियोंने सुज्ञा कर नहीं पिया, २१ राणियोंके तो पुत्र हुए, ११ राणियोंके नहीं हुए, उस दिनसें खरतर गच्छके सब श्रावक गुरूका महान् अतिशय जांण, पट्ट धारियोंका, चरण प्रक्षालन कर, नव अंग पूनणे लगे, उस पर मोहर रूपिया वगैरह चढाणे लगे, पीछे बादसाह अकब्बरने फुरमांण लिख कर आम श्रावकोंसें, प्रारम्भ कखाया, खरबरा चार्योने, द्रव्य लेणा नहीं चलाया, शाहन्शाहने ये रिवाज प्रारम्भ कराया, सो श्रावक लोक करते हैं, और करते चले आये हैं, अब तो श्रावकोंकों कुछ २ संकल्प विकल्प भी उत्पन्न होता है, मगर इतना खयाल नहीं करते के, प्रथम इन आचार्यों विगर, तुम जैन धर्मको क्या जाणते, दुसरा तुम सवों पर, बादशाह हुमायूका जुलमका हुक्म, मुसल्मान बनानेका था, सो श्री जिनचन्द्रसूरिः न प्रगटते तो, इक लाय लाय इलिल्ला महम्मदे रसू लिल्लाके कलमासरीक होना पड़सा, और इन्होंके पहले लाखों मनुष्योंकों, बादशाहने हिन्दुओंसें मुसल्मीन कर भी डाला था, उस उपकारकों देखते, द्रव्य कोई चीज नहीं हैं, पद्म सूरिः महाराजका चतुर्मास, नागोर था, तब राजा गुरू महाराजका, झड़ोला २१ सोई पुत्रोंके सिर पर रक्खा, और गुरूके पास लेकर आये, गुरूनें कहा आवो बच्चे झडियाओ, इधर आवो, गुरूने सबों पर वास क्षेप करा, वह जड़िया गोत्र प्रगट हुआ, इन्हीं २१ सॉकी कई २ न्यारे २ नख. भी, हो गये, सो लिखणेका अवकाश नहीं, मूल गच्छ खरतर,। १ सूरिः अने सानाट् ग्रंथ. विद्याविजयजीने लिखा है, उसमें हीरविजयसूरिःजाँकी पुष २६४ मांडण कोठारी, मोहरोसे, पृष्ट २७६ में अबजीभणशाली स्वर्णमुद्रासे, पृष्ट २६५ में छ हजार मोहरोसे राधनपुरमें पूजा करी, इस प्रवाहानुसार श्रीपूजजीकी पूजा द्रव्यसे सरू है हीरविजयसूरिःजीको त्यागी वैरागी सब मानते हैं, ११-१२
SR No.032488
Book TitleMahajan Vansh Muktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamlal Gani
PublisherAmar Balchandra
Publication Year1921
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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