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________________ महाजनवंश मुक्तावली सीजी, विमलसीजी, करमसीजी, एवं ४ पुत्र हुए, तिलोकसीजीने, हुलकरकों सहायता दी, और जो धन, उस लड़ाईमें मिला, उसका चौथा हिस्सा, हुलकरने तिलोकसीजीकों दिया, क्रोड़पती होगये, बाकी तीनों भाइयोंकी "शन्तान, बहुत है, लेकिन तिलोकसीजीके चार पुत्रोंके नाम, १ पदमसीजी २ धर्मसीजी ३ अमरसीजी ४ टीकमसीजी ज्ञानमलजी रामचंदजी नथमलजी लालचंदजी सदासुखजी __सागरचन्दनी . सुजाणमलजी गुणचन्दजी उदयमलजी पुत्र २ सुमेर, उदय, मंगलचन्दनी चांदमलजी शोभागमलजी लक्ष्मीचन्दनी गुलाबचंदजी एम ए जनरल कल्याणमलनी कान्फरेंस जैन, तिलोकसीजी वीकोनर वसे, इन, ४ पुत्रोंकी शन्तान, बीकानेर, तथा जयपुर, अजमेर वसते हैं, वाकी ढड्डे फलोधी आदि मारवाड़में, सारंगजीके पहलेका परिवार, कच्छदेशमें दसा वीसा हो गये, (पीपाड़ा गोत्र ) गेलोत राजपूत, पीपाड़ नगरका राजा, करमचन्दकों, वर्द्धमानसूरिःनें - सं० १०७२ में प्रतिबोध करके महाजन किया मूलगच्छ खरतर । (घोड़ावत छजलाणी गोत्र ) राजपूत रावत वीरसिंह जायल नगरका राजा था, उसकों शिकार खेलनका बडा शौकथा, एक दिनभी शिकार खेले विना रहै नहीं, एक दिन राजा शिकार खेलने गया, उसी समय नागोर नगरसें बिहार करके, श्रीजय प्रभ सूरिः, रुद्र पल्ली खरतराचार्य जायल नगरके वनमें, उतरे थे, आचार्य, कहा, हे राजा निरपराधी जीवोंकों मारणा, ये राजपूतोंका धर्म नहीं, जो दुश्मनशस्त्र डालदै, मुंहमें घासका तृण उठालेबै, अथवा भगजावै तो, खानदानी राजपूत, न्यायवन्त, ऐसे शत्रुकों कभी नहीं, मारे, तो हे राजा, हिरण, -खरगोश, बकरा वगैरह जानवर शस्त्र रहित, नंगे, घास मुंहमें डालणेवाले भयसे भागनेवाले, निरपराधियोंकों तूं कैसैं मारता है, राजा न्यायवन्त बुद्धि
SR No.032488
Book TitleMahajan Vansh Muktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamlal Gani
PublisherAmar Balchandra
Publication Year1921
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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