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________________ महाजनवंश मुक्तावली ७५ प्रति बोध देकर, जैनी महाजन बणाया, गोविन्द चन्दका पुत्र तेलका व्यापार करा, बहुत धन उपार्जन करा, तबसें श्रीपति गोत्रकों तिलेरा साखासे पुकारने लगे, तीसरी पीढी झांझण सीजी हुए, जिन्होंने संघ निकालकर सजयकी यात्रा की, इन्होंकी ६ मी पीढी विमलसीजी हुए, जिन्होंने, नाडोल, फरड़, फलोधी, नागोर, बाहड़ मेर, अजमेर, इत्यादि क्षेत्रोंमें, जगह २ जिन मन्दिर कराकर प्रतिष्ठा कराई, सं. विक्रम बारहसेमें, इन्होंके वंशमें, भांडाजी हुए, जिन्होंने जेसलमेर, सिद्धपुर, पट्टण, जालोर, भीनमालमें, शास्त्र संग्रह कराणेमें, ज्ञानभण्डार करणेमें द्रव्यकी बहुत सहायता दी, भांडाजीके पुत्र धर्मसीजीनें शाह पद प्राप्त किया, सत्रुजय, आबू , गिरनार, . बनारस वगैरहमें, प्रशाद कराया, संघ माल पहन कर, समेत सिखरकी यात्रा की, सत्रुजय, गिरनार, तारंगा वगैरह, हरजगह पर, सोनेका कलश चढाया, चौरासी यात्रा की, संघमें मोहर २ लाहण वांटी, मोतियोंकी माला,. सोनहरी कल्पसूत्र, मुनियोंके अर्पण की, मुनियोंने संघके भण्डारको सुपरद किया, पृथ्वी परिक्रमादी तीन क्रोड़ असरफियां खरचकर, भण्डार स्थापन करा, बहुतसे मकान बणाये, धर्मसी नामकों धर्म करणीसें, अमर कर दिया,. सम्बत् १२५६ में अम्बिका देवीने, प्रशन्न होकर, आमके वृक्षके नीचे, धन बतलाया, धर्मसीजीके नवमी पीढी, कुमार पालजी हुए, उन्होंने सिद्धपुर पाटण छोड़ सिंधदेशका निवास किया, श्री शान्तिनाथजीका मन्दिर - सिंधमें करवाया, कुमारपालजीके तीसरी पीढी वाढजी हुए, वह शरीरमें बडे हृष्टपुष्ट मजबूत थे, सं. १६१५ की सालमें, सिंधदेशकी भाषामें, इन्होंको ढट्ठा कहणे लगे, संस्कृतमें ( द्रढा ), तबसें ढढानख प्रसिद्ध हुआ, बाढजी की चौथी पीढी सच्यावदासजी हुए, उन्होंके पुत्र सारंगजीसे सारंगाणी ढढ्ढा कहलाये, सिंधदेशकों छोड़, फलोधी नगरमें वसने लगे, सारंगजकेि रुघनाथ मलजी, और नेतसीजी, दो पुत्र हुए, नेतसीजीके खेतसीजी आदि ४ पुत्र हुए, इस जगह रुघनाथ मलजीके परिवारका, पता नहीं मिला, नेतसीजीके तीन पुत्रोंका भी परिवार बहुत हुआ, लेकिन यहां खेतसीजीके परिवारका पत्ता पाया, सो लिखते हैं, खेतसीजीके, रतनसीजी, तिलोक
SR No.032488
Book TitleMahajan Vansh Muktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamlal Gani
PublisherAmar Balchandra
Publication Year1921
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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