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________________ 68 जैन-विभूतियाँ प्रकाशित कर आपने आगामिक रहस्यों को सर्वसाधारण के लिए सुलभ कर दिया। जैन धर्म के मौलिक इतिहास के प्रथम दो खण्ड आपने स्वयं लिखे एवं अन्य दो खण्ड आपकी प्रेरणा से लिखे गये। पट्टावली प्रबन्ध संग्रह एवं आचार्य चरितावली आपकी अन्वेषी वृति के ही सुफल हैं। आपके आध्यात्मिक प्रवचन ‘गजेन्द्रव्याख्यानमाला' के रूप में प्रकाशित हुए है। आपकी प्रवचन शैली कथात्मक थी, तत्त्वज्ञान भी बड़े सहज व सरल भाषा में उद्घाटित कर समझा देते थे। आचार्यश्री प्राकृत, संस्कृत, राजस्थानी एवं हिन्दी के उद्भट कवि एवं विद्वान् थे। आप सूक्तियाँ, चरित्र एवं उपदेश छन्दबद्ध पद्यों में सहज ही अभिव्यक्त कर देते थे। __आपके शासनकाल में संतो की 31 एवं साध्वियों की 54 कुल 85 दीक्षाएँ सम्पन्न हुईं। सं. 2009 में सादड़ी श्रमण संघ सम्मेलन में आप प्रायश्चित्त एवं साहित्य शिक्षण निर्णायक एवं सहमन्त्री मनोनीत हुए। सं. 2013 से 2024 तक आप श्रमण संघ के उपाध्यक्ष रहे। पाली के अन्तिम चातुर्मास में आपका स्वास्थ्य गिरता गया। सं. 2048 के निमाज प्रवास में आपने तेले की तपस्या के बाद संथारा ग्रहण किया एवं 21 अप्रैल को 81 वर्ष की वय में समाधि मरण को उपलब्ध हुए। आपने रत्नवंश श्रमण परम्परा के अष्टम पट्ट पर आचार्यश्री हीराचन्द जी को मनोनीत किया।
SR No.032482
Book TitleBisvi Shatabdi ki Jain Vibhutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilal Bhutodiya
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2004
Total Pages470
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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