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________________ 24. जैन-विभूतियाँ जैन समाज उस समय अनेक रूढ़ियों से ग्रस्त था। अनपढ़ जनता जातीय पंचायतों के शिकंजों में दबी थी। छोटी-छोटी बातों के लिए उन्हें जाति बहिष्कृत कर दिया जाता। बाल विवाह, वृद्ध विवाह एवं बहु पत्नित्व की प्रथाएँ समाज को खोखला कर रही थी। वर्णीजी ने प्रदेश में शिक्षासंस्थाओं की नींव रखी। गाँव-गाँव भ्रमण कर उन्होंने रूढ़ियों के निवारणार्थ गरीब व अनपढ़ जनता को प्रेरित किया। वर्णीजी की प्रेरणा से संस्थापित शिक्षण संस्थानों में मुख्य थे बरुआसागर, शाहपुर, द्रोणगिरि के विद्यालय एवं खुरई, जबलपुर के गुरुकुल एवं ललितपुर, इटावा व खतौली के विद्यालय। वर्णीजी की उदारता अद्भुत थी। अपने पास जो भी वस्तु होती उसे किसी जरूरत मन्द को देते उन्हें कींचित समय न लगता। उनके ऐसे अवदानों की अनेक कथाएँ प्रचलित हैं। दु:खी एवं गरीब भाइयों को देखकर उनका अंत:करण-रोम रोम उसकी सहायता के लिए व्यग्र हो उठता। ऐसे भी प्रसंग आए जब राह में सब कुछ लुटाकर मात्र एक लंगोटी पहने घर में प्रवेश किया। वर्णीजी प्रभावशाली वक्ता थे। उनके प्रवचन सुनने के लिए हजारों श्रोता उमड़ते एवं मंत्र मुग्ध हो उन्हें सुनते। वे बुन्देलखण्डी मिश्रित खड़ी बोली में विविध दृष्टांतों से सीधे श्रोता के हृदय में उतर जाते। वर्णीजी की लेखन शैली चित्ताकर्षक होती। उन्होंने अपनी देनन्दिन डायरी में मात्र घटनाओं के विवरण ही नहीं लिखे अपितु उनकी सार्थक मीमांसा कर उन्हें पाठकों के लिए उपयोगी एवं प्रेरणास्पद बना दिया है। "वर्णी वाणी'' नाम से उनकी डायरी के चार भाग प्रकाशित हुए हैं। "मेरी जीवन गाथा'' नाम से प्रकाशित उनकी आत्मकथा धर्मप्रेमियों में बहत लोकप्रिय हुई। आचार्य कुन्दकुन्द के 'समयसार' पर रचित उनकी प्रवचनात्मक टीका अत्यंत उपयोगी है। सागर से परिभ्रमण कर वर्णीजी बरुआ सागर पधारे जहाँ जिन प्रतिमा के समक्ष उन्होंने क्षुल्लक (वीर सं. 2473) दीक्षा अंगीकार की। क्षुल्लक अवस्था में उन्होंने उत्तरप्रदेश और दिल्ली के विहार किए।
SR No.032482
Book TitleBisvi Shatabdi ki Jain Vibhutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilal Bhutodiya
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2004
Total Pages470
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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