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जैन-विभूतियाँ
ग्रंथ-संरक्षक
1.श्री ईश्वरभाई ललवानी
सुप्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी अखिल भारतवर्षीय ओसवाल महासभा के जनक एवं जलगाँव के प्रसिद्ध जौहरी 'राजमल लखीचन्द' फर्म के मालिक स्व. श्री राजमलजी ललवानी के सुपुत्र श्री ईश्वरभाई ने सर्वधर्म समभाव के संस्कार विरासत में पाए हैं। उनकी देखरेख में फर्म ने व्यावसायिक बुलंदियाँ छुई हैं। सामाजिक सौहार्द एवं सहकारिता को ईश्वर भाई ने जीवन मंत्र बनाया हुआ है।
2. स्व. तारादेवी चम्पालाल बांठिया
भीनासर के सुप्रसिद्ध समाजसेवी श्री चम्पालालजी बांठिया की धर्मपत्नि तारादेवी धर्मपरायण एवं दानशील महिला थी। उनके सुपुत्र श्री धीरजलाल एवं श्री सुमतिलाल कलकत्ता एवं बीकानेर में व्यवसायरत हैं। धीरजलालजी के सुपुत्र श्री आशीष ने जैन कर्म सिद्धांत पर आधारित ग्राफिक्स एवं एनीमेशन विधा से अमरीका में स्नातकोत्तर उपाधि ली। वे सम्प्रति LIN T.V. में कलानिर्देशक हैं।
3.श्री मोहनचन्द ढ़दा
चैन्नई के सुप्रसिद्ध दवा प्रतिष्ठान ढ़ढ़ा एण्ड कम्पनी के अधिनायक श्री मोहनचन्दजी ढढ़ा का जन्म सन् 1936 में फलौदी में हुआ। आपके पिता स्व. लालचन्दजी ढदा के अध्यवसाय से इस फर्म ने अपार सम्पदा अर्जित की। दवा निर्माण एवं विक्रय में यह संस्थान समूचे देश में अग्रणी है। श्री मोहनचन्दजी सदैव जनहितकारी प्रवृत्तियों से जुड़े रहते हैं। आपके द्वारा संस्थापित ट्रस्ट चैन्नई में दो उच्च माध्यमिक | विद्यालयों का संचालन करता है। आपके धार्मिक अवदान प्रेरणास्पद हैं। आप अहमदाबाद स्थित सेठ आनन्दजी कल्याणकारी संस्थान
के सदस्य हैं।