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________________ 419 जैन-विभूतियाँ परम संरक्षक 1. आचार्य पद्म सागर सूरिजी अनुपम प्रतिभा एवं मधुर वाणी से लाखों श्रोताओं को धर्माभिमुखी बनाने वाले, जिन शासन प्रभावक जैन आचार्य पद्मसागर सूरिजी का जन्म सन् 1935 में मुर्शिदाबाद के अजीमगंज शहर में चौहान जगन्नाथसिंह की भार्या श्रीमती भवानीदेवी की रत्नकुक्षि से हुआ। बालक की प्रारम्भिक शिक्षा भी अजीमगंज में हुई। उन दिनों अजीमगंज जैनों का प्रसिद्ध धर्म-केन्द्र था। प्रारम्भसे ही बालक को जैन संस्कार मिले। आचार्य कैलास सागर सूरिजी की दिव्य वाणी ने बालक के मन में वैराग्य बीज अंकुरित कर दिया। अनेक जैन तीर्थों का भ्रमण कर अन्तत: सन् 1955 में दीक्षित होकर वे सूरिजी के शिष्यरत्न कल्याणसागरजी के पट्टधर शिष्य बने। कुशाग्र बुद्धि तो वे थे ही, प्रवचन प्रतिभा भी आप में थी। सन् 1974 में वे गणिपद से अलंकृत हुए। सन् 1976 में पन्यास पदासीन हुए एवं उसी वर्ष 1 दिसम्बर को महेसाणानगर में वे आचार्य पद से विभूषित हुए। आचार्य पद्मसागर जी ने धर्म की सांस्कृतिक विरासत प्राचीन हस्तलिखित ग्रंथों के संग्रह में अभूतपूर्व योगदान दिया। लगभग 8000 बहुमूल्य ग्रंथ उन्होंने सेठ कस्तूरभाई के अहमदाबाद स्थित एल.डी. इन्स्टीट्यूट को भेंट किए। इसी हेतु आपने सन् 1980 में अहमदाबाद के निकट कोबा में श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र की स्थापना की। यह केन्द्र विकसित होकर विश्व का प्रमुखतम प्रतिनिधि संस्थान बन गया। यहाँ धर्म दर्शन, साहित्य, संस्कृति कला, शिल्प एवं स्थापत्य संरक्षण एवं संवर्धन के अधुनातन संसाधन उपलब्ध हैं। यह संस्थान अब तीर्थभूमि तुल्य है। सम्पूर्ण देश आपकी धर्मस्थली है। जैनधर्म की प्रभावना के लिए सतत् प्रत्यशील रहकर आचार्यश्री ने लाखों लोगों में अर्हती ज्योति जगाई है। आपके प्रवचनों के अनेक संकलन प्रकाशित हुए हैं। 2. मुनि जयानन्दजी जन्म : मुन्द्रा नगर (कच्छ), 1933 पिताश्री : दायजी भाई माताश्री : चंचल बेन दीक्षा : भुज, 1959
SR No.032482
Book TitleBisvi Shatabdi ki Jain Vibhutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilal Bhutodiya
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2004
Total Pages470
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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