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जैन-विभूतियाँ __ 101. लाला लाभचन्द जैन (1909-2002)
जन्म : गुजरानवाला, 1909 पिताश्री : लाला चुन्नीलाल मुन्हानी माताश्री : रल्ला देवी उपाधि : समाज रत्न, 1993 दिवंगति : 2002
सर्वधर्म समभाव के पोषक लाला लाभचन्दजी जैन (मुन्हानी) ने जीवन पर्यंत 'सेवा' के महामंत्र की आराधना की। आपका जन्म सन् 1909 में गुजरानवाला (पाकिस्तान) निवासी लाला चुन्नीलाल जी मुन्हानी की धर्मपरायण पनि रल्लादेवी की कुक्षि से हुआ। पंजाब के भावड़ा ओसवालों में भुन्हानी गोत्रीय श्रेष्ठियों की बड़ी धाक थी। इसी गोत्र में झगडू शाह हुए, जिनके पौत्र जौहरी शाह बड़े नामांकित व्यक्ति थे। उन्हीं के प्रपौत्र लाला लाभचन्द थे। मात्र सत्तरह वर्ष की आयु में आपका विवाह कसूर नगर के लाला पन्नालाल जी की सुपुत्री लाल देवी से हुआ। आप अल्पायु में ही अपने पारिवारिक व्यवसास सर्राफा में निष्णात हो गए। सन् 1947 में विभाजन होने के परिणाम स्वरूप आपको गुजरानवाला छोड़ना पड़ा। सर्वप्रथम आपका परिवार अम्बाला आया, कुछ समय बाद आगरा आकर बस गया। यहीं 'चुन्नीलाल लाभचन्द' नामक फर्म की स्थापना की। अपने परिश्रम व ईमानदारी से अल्पावधि में ही आपकी फर्म ने सर्राफा बाजार में यश अर्जित कर लिया। तैंतीस वर्ष के अध्यवसाय में विश्वसनीयता एवं सद्भावना की छाप छोड़ आपका परिवार सन् 1980 में फरीदाबाद आकर बस गया। आगरा के ऐतिहासिक श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ मन्दिर एवं जैन तीर्थ शौरीपुर में आपका अवदान सराहनीय रहा। जैन पंजाबी संघ, आगरा के आप चवदह वषों तक कोषाध्यक्ष रहे।
फरीदाबाद आवासित होने के बाद आपको वहाँ जिन-मन्दिर का अभाव सदैव अखरता था। सन् 1991 में आचार्य विजयेन्द्र दिन्न सूरिजी के