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जैन-विभूतियाँ
383 वे अंधविश्वासों एवं कुंठित मान्यताओं के कभी पक्षधर नहीं रहे। उनका चिंतन क्रांतिदर्शी था। अबोध बच्चों को धार्मिक सम्प्रदायों में दीक्षित करने के प्रश्न पर उन्होंने 'बाल दीक्षा' का पुरजोर विरोध किया। सन् 1943 में बांठिया जी ने राज्य सभा में इस हेतु एक बिल भी प्रस्तुत किया। सेठ सोहनलालजी दूगड़ (फतेहपुर निवासी) पं. सुखलालजी संघवी, मुनि जिन विजयजी, श्रीमती विजयलक्ष्मी पण्डित, प्रो. श्यामाप्रसाद मुखर्जी प्रभृति अनेक विद्वानों के समर्थन के बावजूद बिल पास न हो सका। इस प्रश्न पर उन्हें माननीय डॉ. गौरीशंकर ओझा, सर सी.बी. रमन, श्री कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी, सर मिर्जा इस्माईल, सर सिरेमल बाफना प्रभृति सज्जनों का भी समर्थन प्राप्त हुआ। भूतपूर्व सालीसीटर जनरल, बम्बई राज्य श्री चीमनलाल चाकूभाई शाह ने तो बाल-दीक्षा को समाज का महान् कलंक बताया था।
समय की शिला पर अपने सशक्त हस्ताक्षर कर सन् 1987 में चम्पालालजी समाधिमरण को प्राप्त हुए।