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________________ 381 जैन-विभूतियाँ 97. सेठ चम्पालाल बांठिया (1902-1987) जन्म पिताश्री : भीनासर, 1902 : हमीरमल बांठिया : जवाहर बाई माताश्री दिवंगति : 1987 अद्वितीय क्षमता और बेजोड़ प्रतिभा के धनी श्री चम्पालालजी बांठिया ने धर्म और समाज की जो अप्रतिम सेवा की उससे उत्प्रेरित होकर समाज ने उन्हें समाज-भूषण के विरुद से विभूषित किया। श्री चम्पालालजी का जन्म भीनासर (बीकानेर) के ओसवाल श्रेष्ठि श्री हमीरमलजी बांठिया की धर्मपत्नि जवाहर बाई की कुक्षि से सन् 1902 में हुआ। बचपन से ही उन्हें धार्मिक संस्कार मिले । मात्र 12 वर्ष की वय में उनका प्रथम विवाह हुआ। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा भीनासर में ही हुई पर वह माध्यमिक स्तर से आगे नहीं जा सकी। उन्होंने अपने पैतृक व्यवसाय को खूब विकसित किया। वे बैंकिंग व्यवसाय के अतिरिक्त जूट, मिनरल, कपड़ा, लकड़ी, बिजली एवं मशीनरी व्यापार में भी संलग्न रहे। वे आकर्षक व्यक्तित्व के धनी थे। मध्यम कद काठी, सुघड़नाकनक्श, घनी मूछे, बन्द गले का कोट, सर पर राजस्थानी पगड़ी, चेहरे पर गाम्भीर्य, मुस्कान एवं ओज की त्रिवेणी। वे लक्ष्मी के वरद पुत्र तो थे ही, सरस्वती के भी उपासक थे। परम्परागत रूढ़ियों एवं धार्मिक असहिष्णुता से वे सदैव संघर्ष करते रहे। स्पष्टवादिता और साम्प्रदायातीत धर्मानुराग उनकी रगों में कूट-कूट कर भरा था। वे सेवा और सौजन्य की प्रतिमूर्ति थे। ___ व्यवसाय की बहुमुखी व्यस्तता के बावजूद साहित्य संरक्षण, शिक्षा प्रसार, संस्कार निर्माण, समाज सेवा, महिला स्वावलम्बन एवं अन्यान्य जनोपयोगी प्रवृत्तियों के लिए उन्होंने तन-मन-धन से सहायता दी। गुरुवर्य
SR No.032482
Book TitleBisvi Shatabdi ki Jain Vibhutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilal Bhutodiya
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2004
Total Pages470
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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