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जैन - विभूतियाँ
एवं सहायता द्वारा फिल्म, नाट्य तथा साहित्य क्षेत्र की उभरती हुई विभिन्न प्रतिभाओं को प्रश्रय, प्रोत्साहन व संरक्षण प्रदान किया। उन्होंने अनेकों साहित्यकारों की रचनाओं का निजी व्यय पर प्रकाशन किया, प्रोत्साहित किया। वे एक मेधावी विश्लेषणात्मक मस्तिष्क के धनी, सहृदय पाठक व लेखक थे, जिन्होंने विविध विषयों पर आलेख लिखे, जिसमें उनका तलस्पर्शी ज्ञान परिलक्षित होता है । वे एक कुशल वक्ता भी थे, जिनका अपने विषयों पर आधिपत्य एवं वक्तृत्व शैली श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देती थी तथा उन्हें चिंतन, मनन करने के लिए अनुप्ररित भी ।
वे जन्मजात जैन थे, परन्तु 'सर्वधर्म समभाव' की जीवन्त मूर्ति थे। सभी धर्मों व धर्मावलम्बियों को समान आदर देना एवं सहिष्णु व्यवहार उनके व्यक्तित्व का अभिन्न अंग था । स्व श्रमोपार्जित धन का सदुपयोग उन्होंने विभिन्न धार्मिक व सामाजिक कार्यों, संस्थाओं को मुक्तहस्त से दान देने में किया। बिना भेदभाव के जात-पात अथवा धर्म की सीमाओं से परे वे विभिन्न धमों के धार्मिक स्थलों के लिए सहृदयता से सहायता किया करते थे । वे इस सिद्धान्त के कट्टर प्रतिपादी थे कि धर्म व्यक्तियों को आपस में जोड़ने वाला होना चाहिये, न कि विभेदकारी। उनका मानना था कि सभी धार्मिक प्रसंगों में सहृदयता, सहनशीलता, समानता, सम्मान तथा आपसी सदाशयता ही व्यवहार का आधार होना चाहिये एवं इसी उद्देश्य पूर्ति के लिए वे सतत प्रयत्नशील रहे । आत्मज्ञान प्राप्ति की चिरंतन जिज्ञासा ने उन्हें मनीषी संतों से साक्षात्कार के लिए सदैव प्रेरित किया। उनकी जिज्ञासावृत्ति, विनय, श्रद्धा भाव तथा अंतः प्रस्फुटित ऊर्जा को पहचानकर विभिन्न संत आचार्यों ने ज्ञान व धर्म से संबंधित उनकी अनेकों जिज्ञासाओं का समाधान किया तथा मार्गदर्शन प्रदान किया ।
वस्तुतः श्री नाहटा जी लक्ष्मी के वरद् पुत्र थे, तो सरस्वती के मानस पुत्र । वे स्वप्नद्रष्टा थे, तो कर्मवीर भी । जीवन में ऐसा अद्भुत सामंजस्य विरला ही दिखाई देता है। रचनात्मक क्रियाशीलता उदात्त हृदय एवं समदृष्टि ने उन्हें लोकप्रिय बना दिया। इस बहुआयामी व्यक्तित्व के जीवन का प्रत्येक क्षण सृजनात्मकता का इतिहास है ।