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जैन-विभूतियाँ
355 पीतमलजी ने अपने अध्यवसाय से खूब सम्पत्ति अर्जित की। आपको धौलपुर महाराज ने 'सेठ' की पदवी से सम्मानित किया। आपके तीन पुत्रों में अचलसिंह सबसे छोटे थे। आगरा में मैट्रिक तक शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् अचलसिंह ने नैनी एवं कानपुर के कृषि विद्यालयों में अध्ययन किया।
वे 1916 में प्रथम बार अखिल भारतीय काँग्रेस कमेटी के लखनऊ अधिवेशन में सम्मिलित हुए और उसी समय से देश सेवा तथा जन सेवा के कार्य में जीवन अर्पण कर दिया। आपने सन 1917 में श्रीमती ऐनी बेसेंट द्वारा संचालित 'होमरूल' आंदोलन में भाग लिया। सन् 1918 में 'रोलेट एक्ट' का बहिष्कार किया। इस प्रकार सार्वजनिक जीवन का समारम्भ हुआ। वे राष्ट्र के स्वतंत्रता आन्दोलन को समर्पित हो गये।
सन् 1928 में 'अचल ग्राम सेवा संघ' नामक संस्था की स्थापना कर ग्रामों में शिक्षा व स्वास्थ्य के लिए कार्य प्रारम्भ किया तथा सन् 1932 तक 300 रुपए प्रति माह इस कार्य के लिए व्यय किया। उनके इस सेवा कार्य ने गाँवों में क्रांति कर दी। गाँवों के उत्थान में आपकी सेवा अविस्मरणीय रहेगी।
सन् 1930 में 'नमक सत्याग्रह' में पहली बार 6 माह के लिए जेल गए। इसके पश्चात् 1932 में सत्याग्रह आंदोलन में अठारह माह, सन् 1940 में व्यक्तिगत सत्याग्रह आंदोलन में एक वर्ष एवं 1942 में 'भारत छोड़ो आन्दोलन' में ढाई वर्ष के लिए जेल यात्रा की।
सन् 1934 में आप बिहार की केन्द्रीय भूकम्प सहायता समिति के सदस्य चुने गए। इसी वर्ष आप लखनऊ में भारत जैन महामण्डल तथा अजमेर में होने वाले अखिल भारतवर्षीय श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन नवयुवक सम्मेलन के अध्यक्ष चुने गए। इसी वर्ष अजमेर में ही होने वाले अखिल भारतवर्षीय द्वितीय ओसवाल महासम्मेलन के अधयक्ष निर्वाचित हुए। सन् 1935 में एक लाख रुपए दान से 'अचल ट्रस्ट' की स्थापना की। संप्रति इस संस्था से संबद्ध अचल भवन में पुस्तकालय एवं वाचनालय चल रहे हैं। सन् 1953 में आगरा में होने वाली अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अधिवेशन के आप स्वागताध्यक्ष चुने गए थे।